शनिवार, 19 नवंबर 2011

नहीं होने देंगे प्रदेश का विभाजन

मायावती का हर दांव जल्द बाज़ी में अब उल्टा पड़ रहा है |
चुनाव में खुद को पिटता देख और समाजवादी पार्टी को बढ़त लेता देख बौखला गयी है मायावती | आलम ये है कि सरकार के एक दर्ज़न से ज्यादा मंत्रीगण लोकायुक्त के चंगुल में हैं और जनता के मध्य जाने की हिम्मत न तो बसपा के नेताओं में है न स्वयं मुख्यमंत्री में | हर रोज़ नया पैंतरा चलकर उल्टा सीधा गणित बैठाकर देखती है | लेकिन जिस सरकार की गर्दन जनता के हाथ में आ चुकी हो वो अब बचने वाली नहीं है | लोग मायावती का लूट तंत्र और गुंडाराज कैसे भूल सकते हैं | बलात्कारियों की अंगरक्षक बनी मायावती  के कारनामे याद करते ही लोगों के मुंह का जायका कड़वा हो उठता है | लोग गुस्से में आकर थूक देते हैं |
समाजवादी जोड़ने में विश्वास करते हैं जबकि जातिवादी मायावती तोड़ने में | ये नीति इंसानियत और समाज की दुश्मन तो है ही ये नीति दुश्मन है भाईचारे की | भाषा के नाम पर , क्षेत्र के नाम पर , संस्कृति के नाम , जातीय बहुलता के नाम पर प्रदेश को बांटने से क्या हासिल होगा ? कल ब्रज प्रांत की मांग उठेगी , रूहेलखंड की मांग उठेगी, कौशल प्रदेश की मांग उठेगी, बौद्ध प्रदेश की मांग उठेगी ,चम्बल प्रदेश की मांग उठेगी ,तराई प्रदेश की मांग उठेगी, विन्ध्याचल की मांग उठेगी   |  उर्दू प्रदेश ,गंगा प्रदेश ताज प्रदेश आदि की आवाजें दबे स्वर आती रही हैं | इस तरह तो प्रमाणित हो जायेगा की नक्सलवादियों की मांगे जायज़ हैं |
दर असल विकास का सपना दिखा कर भावनाएं  भड़काने वाले भूल जाते हैं कि विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो सत्ता की नीयत/मंशा  पर निर्भर करती है | नीयत होने पर नीति बनती है ,नीति बनने पर योजना बनती है | योजना बनने पर बजट में प्रावधान किये जाते हैं जिसके फलस्वरूप विकास को मूर्त रूप दिया जा सकता है | इसमें क्षेत्र वाद या असंतुलित विकास का रोना वो ही लोग रोते हैं जिन्होंने पांच साल संसाधनों की अनदेखी की हो और जिन्हें चुनाव के वक़्त बहानों का पिटारा खोलना हो |
 समाजवादी पार्टी का स्पष्ट मानना है कि राज्य का बटवारा किसी भी दशा में उचित नहीं है  | छोटे छोटे राज्यों के निर्माण को जो तर्क दिए जा सकते हैं वो ही तर्क छोटे छोटे राष्ट्रों के लिए भी दिए जा सकते है और तर्क के आधार पर लोग उसे प्रमाणित भी कर देंगे | इसका मतलब ये तो कतई नहीं कि वे सही हैं| ये निसंदेह विघटन कारी प्रब्रत्ति है ,नुकसानदायक है |
 इतिहास उठा कर देखा जाये तो महत्व उसे ही मिला है जो बड़ा है , शक्तिशाली है, बहुमत वाला है, विस्तार वाला है | जबकि छोटे राज्यों को कहीं भी तबज्जो नहीं मिलती | भारत के छोटे छोटे टुकड़ों में बंटे होने के कारण ही अंग्रेजों ने हमें आसानी से गुलाम बना लिया | छोटे राज्य ताक़त में कमज़ोर थे सो लड़ न सके |
आज की संसदीय प्रणाली में भी बहुमत का ही रुतबा है | बड़े राज्यों के सांसद मिलकर अगर ठान लें , तो क्या मजाल जो लोक सभा / राज्यसभा चल जाए | यही सांसद अपने संख्याबल से राज्यों का हित सुरक्षित करते हैं | केंद्र तभी पैसा देगा जब राज्य के सांसद बहुमत से मांग करेंगे | 574 सांसदों वाली लोकसभा में सात आठ सदस्य चीख कर थक जाते हैं | उनकी कोई सुनता तक नहीं | बड़े राज्यों के मुख्यमंत्री का दखल भी केद्र सरकार में कहीं अधिक रहता है |
सबसे बड़ी बात ये है कि मायावती उ० प्र० को जड़ से समाप्त करना चाहती है  जो इसकी विध्वंसकारी मानसिक प्रवृति को इंगित करता है | फिर ये राज्य निर्माण को लेकर किसी भी प्रकार से गंभीर नहीं है , ये तो केवल बहका कर, गुमराह करके और भ्रम रुपी मायाजाल फैला कर लोगों को फांसना चाहती है ताकि येन केन प्रकारेण सत्ता में बनी रहे | ये प्रपंच है मतदाता को भरमाने का | छल है महंगाई और भ्रष्टाचार से जूझ रहे लोगों से और जुगत है सत्ताखोरी की |
लेकिन समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश वासियों के प्रति अपने गुरुतर दायित्व को समझती है और ऐलान करती है कि प्रदेश विभाजन के बसपा मुखिया के सभी प्रयासों का करारा जवाब देगी | किसी भी दशा में इस प्रस्ताव को सदन में आने ही नहीं देगी और यदि आया भी इस प्रस्ताव के साथ साथ सरकार को गिराने से भी नहीं चूकेगी क्योंकि अब माया सरकार बहुमत में नहीं अल्पमत में है |




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