रविवार, 28 अगस्त 2011

कैसी जीत ? काहे का जश्न ? अन्ना को फिर टोपी पहनाई कांग्रेस ने |

     लोकतंत्र के जश्न में पूरा देश आंदोलित है | अन्ना हजारे ने साबित कर दिया कि देश की जनता को साथ लेकर किये जाने वाले आन्दोलन ही इतिहास बनाया करते हैं | अन्ना के नेतृत्व में 13 दिन तक चलाये गए इस महासंग्राम ने न सिर्फ देश के हर वर्ग को जोड़ा बल्कि जनलोकपाल को भावनात्मक  मुद्दा बना कर सरकार को भी मुसीबत में डाल दिया | जनता रोमांचित हैं कि अब सरकार ने अन्ना की मांगे मान कर इस बात को मान लिया है कि जनता ही देश की असली नीति निर्धारक है, संसद नहीं | वस्तुतः ये लड़ाई जनता बनाम संसद , संसद बनाम जन लोकपाल और कौन सर्वोच्च के पेंच में ही फंसी रही |
अब अन्ना ने अनशन समाप्त कर दिया है | तो क्या उनकी मांगे सरकार ने मान लीं है ?
1 क्या प्रधानमंत्री इसके दायरे में आगये ? 
2 क्या सांसद  इसके दायरे में आ गये ? 
3 क्या जजों के लिए अलग से कानून आ गया ?  
4 मीडिया , NGOs और कार्पोरेट घराने के लिए क्या कानून बना ?
5 क्या संसद में बिल पास हो गया ? 
6 स्टैंडिंग कमिटी कौन सा बिल आगे बढ़ाएगी , अन्ना वाला या 5 अन्य 
 7 नियम 184 के तहत कुछ हुआ ? वोटिंग तक सरकार ने नहीं कराई |
 8 दोनों सदनों ने जनलोकपाल बिल को लेकर आखिर तय क्या किया ? 
        .शासन का घूंसा जब किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड़ जाता है.
सारा ठीकरा छोटे कर्मचारियों के सर मढ़ कर उसे लोकपाल में लाकर क्या कर लोगे ? वो तो पहले से ही मगर मच्छों के जबड़ों में फंसा है |

   अन्ना ने अनशन क्यों तोडा ?  अन्ना की कौन सी मांग कांग्रेस ने मान ली, कोई बतायेगा ? आश्वाशन तो मनमोहन सिंह पहले से भी दे रहे थे|  फिर अनशन की क्या आवश्यकता आन पड़ी |
अन्ना माने या न मानें, कांग्रेस अन्ना हजारे को फिर से टोपी पहनाने  में कामयाब होगई है |

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

वक़्त आ गया है कि आरक्षण की समीक्षा हो !!!

               अब वक़्त आ गया है कि ये भी तय हो जाये कि आरक्षण में किस जाति को कितना आनुपातिक लाभ हुआ ? किस जाति का 62 वर्षों में सरकारी नौकरियों में क्या % रहा ? किस किस जाति के कितने नुमाइंदे देश व प्रदेश की सर्वोच्च पंचायतों में बाकायदा चुने गए हैं ?   यूपी में एक ही जाति के 100 से अधिक IAS हैं जो खुल कर BSP के लिए कार्य करते हैं | इसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए | यूपी की SC सूची की 66 जातियों में से 2 -4 को छोड़ कर किसी को लाभ लेने नहीं दिया जा रहा | इसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए | इससे पहले कि आरक्षण किसी जाति विशेष की जागीर, बपौती या पुश्तैनी संपत्ति बन जाये , बेहतर है कि इसमें व्याप्त विसंगतियों की समीक्षा कर ली जाये |
              दलितों में ही राजा और रंक का भेद अभी से दिखने लगा है | दलितों की विकसित व लाभान्वित जातियां आरक्षण पर कुंडली मार कर बैठ गयी हैं जो शेष वंचित एवं उपेक्षित दलितों के लिए न केवल घोर चिंता का विषय है बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अवसर की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है | आरक्षित होते हुए भी वंचित और उपेक्षित दलितों का क़द किसी भी आईने में नजर नहीं आता | इस प्रकार विभेद पूर्ण एवं पक्षपाती आरक्षण नियमावली ने उन कम आबादी वाले दलितों को कहीं का नहीं छोड़ा है जो वास्तव में इसके पात्र है | 
                कहीं आरक्षण ही दलितों में पारस्परिक असंतुलन पैदा न कर डाले | वास्तविकता यही है क्योकि एक जातिवादी मानसिकता रखकर बसपा सरकार दलितों में ही विभाजन की प्रष्ठ भूमि तैयार किये जा रही हैं | दलितों में ही एक तबका बना जा रहा है जो सत्ता के बावजूद कमज़ोर है, योजनाओं के बावजूद पीड़ित है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद शोषित है और दलितों की ही सरकार में बहिष्कृत है | हालात न सुधरे तो एक न एक दिन ये सर्वहारा और वंचित वर्ग अपने अधिकारों के लिए दलितों के ही मुकाबले आ जायेगा और अपने अलग हिस्से की मांग करेगा | बेहतर होगा कि सरकारें समय रहते शेष दलितों के दिलों में धधक रहे इस ज्वालामुखी की तपिश को शिद्दत से महसूस करें |
               यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि देश व प्रदेश की  सरकारें अनुसूचितजाति / जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से व अनुसूचित जाति आयोग  समय समय पर अनुसूचित जातियों के विकास हेतु उनके  उत्पीडन , शोषण उनके प्रति बरते जाने वाले सवर्णों का व्यवहार ,उनकी निर्योग्यता छुआछूत आदि विषयों पर शोध कराती हैं| सबसे ज्यादा हैरत अंगेज़ , कड़वा और भोंचक्का कर देने वाला तथ्य ये है कि इनमे उन जातियों का सर्वे किया जाता है जो वंचित, उपेक्षित , उत्पीडित, वहिष्कृत और नारकीय एवं अशिक्षित जीवन जी रही होती हैं और उनके लोग सड़कों पर रह रहे होते हैं | उनके अध्ययन और उनकी सकारात्मक रिपोर्ट पर दलितों की वो जातियां आगे बढ़ कर फायदा लेती हैं जो अपने आप को Rulling  caste  of  India तक कहने  लगी हैं | यानि शोध किसी और पर - मौज किसी और की  | रोग किसी को- इलाज़ किसी को | हक किसी का - खाए कोई और | ये तो साजिश है भाई |
                मजे की बात ये है कि वंचित और उपेक्षित दलितों के विषय पर चर्चा करने पर सबसे ज्यादा मिर्ची इन्ही  Rulling caste of  India  वालों को लगती है और इनकी भाषा वंचित एवं उपेक्षित दलितों के प्रति वही हो जाती है जो आरक्षण फिल्म में आरक्षण के प्रति प्रकाश झा की है यानि शिक्षा गान और मेरिट राग | बेहतर होगा कि दलितों की लाभान्वित जातियां आरक्षण के मूल मर्म को समझते हुए इसमें व्याप्त विसंगतियों को समय रहते स्वयं पहल कर दूर कर लें और दलित भाईचारे को बढायें |
वर्ना हालात तब और भी ज्यादा दुखदाई हो जायेंगे, जब आरक्षण के पैरोकार ही इसके आलोचक बन जायेंगे|

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 4 ; कहाँ गयीं यूपी की विमुक्त एवं घूमंतू जातियां ?

अनुसूचित जाति,  अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़े वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के हो हल्ले में शायद ही किसी को उत्तर प्रदेश की विमुक्त जातियों एवं घूमंतू जातियों की सुध रही हो | नई पीढ़ी को तो शायद समझने में समय भी लगे कि ये क्या बला है ?  
जैसा कि भारत की जन गणना 1961 उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में , में स्पष्ट उल्लिखित है कि-
 उत्तर प्रदेश की बंजारा ,भर , दलेरे, कहार,  केवट , मल्लाह, लोध, मेवाती, औधिया और तगाभाट जातियां अपने नाम के सामने वर्णित जनपदों में विमुक्त जाति( एक ही स्थान पर निवास करने वाली ) घोषित हैं|
इसी प्रकार खुरपलटा, मोंगिया (मोंग), मदारी, सिंगीवाला, औघड़, बैस, भाट, चमरमंगता, जोगी, जोगा, किगिरिया, महावत (लुंगी पठान), भडरी, सपेरा (सपेरिया), कर मंगिया हिन्दू (महावत) और बेलदार जातियां अपने नाम के सामने वर्णित जनपदों में घूमंतू जाति घोषित हैं| ये शासनादेश सं-  ए / 700(5)-1959, दिनांक 12 मई 1961 तद संशोधन शासनादेश सं- 1276/ 26-3-92-3(42)-90, दिनांक 28 नवम्बर 1992, के अनुसार घोषित हैं |                     विसंगति ये है कि उत्तर प्रदेश में इनमे से कुछ को विमुक्त एवं घूमन्तु घोषित होने के बावजूद जबरदस्ती पिछड़े वर्ग का जाति प्रमाण पत्र पकड़ा दिया जाता है | जब कि नियमानुसार सम्बंधित जनपदों में विमुक्त एवं घूमंतू जाति का प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना चाहिए | शेष जातियों का आज तक पता ही नहीं चल सका कि वो गयीं कहाँ ? न GEN/SC/ST/OBC  की सूची में ही रहीं | ऐसा यदि जानबूझ कर किया जा रहा है तो स्पष्ट होना चाहिए कि किन लोगों को फायदा पहुँचाने की नीयत से वास्तव में ऐसा अन्याय किया जा रहा है ?
    ये अन्याय उच्च न्यायालय के आदेश की उस भावना के सर्वथा प्रतिकूल है जिसमे स्पष्ट किया गया है कि विमुक्त जातियां अनुसूचित जनजातियों में समझी जाएँगी | AIR 1983 P&H 230(232)


सोमवार, 1 अगस्त 2011

आरक्षण की इस घोर विसंगति का क्या कारण है ?

कोई ज्ञानी पुरुष यदि जानकारी रखता हो तो बताने की कृपा करे|

1-दिल्ली का मोची जाति का व्यक्ति यूपी माइग्रेट होने पर किस जाति में गिना जायेगा ? जबकि यूपी में मोची जाति पिछड़ी में है |
2-यदि कोई मुस्लिम धोबी धर्म परिवर्तन कर हिन्दू बन जाता है तो वो धोबी जाति का कौन सा प्रमाणपत्र लेगा SC का या BC का और क्यों ?

3-यूपी की SC की सूची में एक ही जाति के नाम के आगे चार चार पर्यायवाची या उपजातियों का व्यौरा क्यों ?
4-पंजाब के आदि धर्मी या सिकलीगर जाति के लोग यूपी माइग्रेट होने पर किस जाति का प्रमाण पत्र यूपी सरकार से लेंगे क्योंकि दोनों में से कोई भी जाति यूपी की SC/BC/ST सूची में नहीं है | या फिर अपना जाति प्रमाण पत्र लेने पंजाब दौड़ लगायेंगे | और अगर पंजाब से ले भी आये तो क्या यूपी सरकार ...उसे मानेगी ? या इन्हें General घोषित कर कर देगी ?

5-मध्य प्रदेश का कुम्हार जाति का व्यक्ति जो SC में आता है ,यूपी माइग्रेट होने पर क्या माना जायेगा ?

6-गोंड जाति यूपी के १३ जनपदों में ST है , शेष यूपी में SC क्यों ?

7-गोंड जाति के ST प्रमाण पत्र पर कोई व्यक्ति आगरा में भर्ती तो हो सकता लेकिन अपने बच्चों के ST प्रमाण पत्र आगरा से नहीं ले सकता| पहले तो जारी ही नहीं होंगे और पिता के प्रमाण पत्र के आधार पर जारी हुए तो SC के | ये क्या मजाक है ?

8-दिल्ली राज्य का निवासी यूपी का मुख्यमंत्री कैसे बन सकता है ?
9 -जमुना नदी के उस पार का भू भाग जो दिल्ली प्रदेश में आता है, वहां का मल्लाह मछुआ समुदाय अनुसूचित जाति में सूची बद्ध है और वह क्षेत्र जो उत्तर प्रदेश में आता है यानि आगरा एवं गाजिआबाद जिले का मल्लाह विमुक्त जाति में | 
          जब कि यूपी के शेष जिलों का मल्लाह अन्य पिछड़ा वर्ग में | आरक्षण की इस घोर विसंगति का क्या कारण है ?
ये मनगढ़ंत सवाल नहीं, बल्कि तमाचा हैं उन लोगों के मुंह पर, जो समता मूलक समाज और भाईचारा बनाओ कमेटी बना कर लोगों को उल्लू बना रहे हैं |