बुधवार, 28 सितंबर 2011

नए जिलों का गठन : चुनावी हथकंडा , जनता को फुसलाने की मायावी घटिया कोशिश

                निकाय चुनाव में हार के डर से चुनाव से कन्नी काटती आ रही मायावती ने विधान सभा चुनाव के लिए नए शिगूफे छोड़ने शुरू कर दिए हैं | साढ़े चार साल जन भावनाओं के खिलाफ और हिटलर शाही पर आमादा बसपा सरकार की मुखिया ने आवाम की सुध तक नहीं ली | पूरा प्रदेश विकास की बाट जोहता रहा और मायावती अपने मूर्ति प्रेम में बाबा साहब से भी ऊंची अपनी खुद की मूर्तियाँ गड़वाने में मस्त रही | जबकि सड़कों पर व्यापारी लुटते रहे , महिलाओं और छोटी बच्चियों को इसके विधायक इन साढ़े चार सालों में नोचते दबोचते और रौंदते  रहे | गरीब आदमी इलाज़ तक को मोहताज रहा जबकि अस्पतालों में लाखों करोड़ के स्वास्थ्य घोटाले इसके चहेते मंत्री करते रहे और अफसरान जान से मारे जाते रहे | पूरा नोयडा ,ग्रेटर नोयडा मुख्यमंत्री ने अपने थर्ड क्लास भाई को अपना दलाल बना कर बेच डाला | किसान अपनी ही ज़मीन से बेदखल कर दिए गए और जबरन अपराधी बना दिए गए | अपनी जाति के चंद नाकारा, बेहया और प्रमोशन पाने को बेताब , कानून की धज्जियां तक उड़ाने को उतारू अफसरान को नियम कानून से हटकर उच्च पदों पर बैठाने का घिनौना काम किया गया |,उनके लिए विशेष पद तक गठित करने का बेगैरती भरा इतिहास रचा गया | जबकि सैकड़ों ईमानदार दलित/ सवर्ण अधिकारी आज भी सस्पैंड पड़े हैं | इतना ही नहीं मायावती के लूट तंत्र से आजिज़ वरिष्ठ IAS / IPS  ने या तो आत्महत्या करली , या नौकरी छोड़ने में ही भलाई समझी | पूरे प्रदेश में बिना पैसा लिए एक भी पद पर भर्ती नहीं हुई और तो और गाँव गाँव जो सफाई कर्मचारी रखे गए वो गरीब बाल्मीकि भाइयों को मिलने वाली नौकरियों को नीलाम करके रखे गए | बाल्मीकि भाई आज भी बेकार हैं | मायावती का लूट तंत्र यही नहीं रुका , प्रदेश के कोने कोने में पटवारी से लेकर चपरासी तक के ट्रांसफर में इसके जिलाध्यक्षों ने जबरन वसूली की और जो राशन की दूकान से लेकर थाने तक में अपना हिस्सा बाँध आये | अपनी अपनी बिरादरियों में पैसा वसूलने के लिए दर्ज़ा राज्य मंत्री छोड़ दिए जिन्होंने गंदगी और भ्रष्टाचार की ऐसी नुमाइश की, जिससे समाज में ईमानदारी के पैर भी एक बारगी डिगते नजर आये | बस वो शख्स ही खुश था जो लूट रहा था या लूट तंत्र  में हिस्सा या संरक्षण पा रहा था |
घटिया सामग्री और कमीशनखोरी का एशियाई रिकार्ड यानी कांसीराम शहरी आवास योजना और पांच पांच सौ रुपये वसूल कर दी जा रही महामाया पेंशन योजना के भरोसे विधान सभा चुनाव जीतने का सपना पाले बैठी बसपा सरकार अब समाजवाद की घनघोर आंधी से मुकाबला देख अपना आत्मविश्वास खो चुकी है और अपनी हार प्रत्यक्ष देख रही है | मछुआ जातियों के आरक्षण को अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में निरस्त करवा देने वाली मायावती कभी सवर्णों से, कभी मुसलमानों से, कभी जाटों से तो कभी गूजरों से आरक्षण का झूठा वायदा कर रही है  तो अब बिना बजट और ढांचे के जिले बना कर जनता को गुमराह कर रही है | अब इस धोखाधडी से वोट हाथ नहीं आने वाला | साढ़े चार साल में प्रदेश के मतदाता ने बहुत कुछ खोया है | नौजवानों, मजदूरों, वंचित और उपेक्षित अति दलितों, अति पिछड़े वर्गों की भविष्य की संभावनाओं को लगभग समाप्त करदेने वाली सर्वजन सरकार की भयावह नीतियों के मकड़ जाल से निजात पाने को आज आम आदमी हाथ पैर मार रहा है | उसको अगर कुछ चाहिए तो वो है "मौका" /,"अवसर " | इस गुंडी, बेईमान, घोर स्वजातिवादी और लूट में माहिर सरकार को उखाड़ फेंकने का और प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त करने का |
लेकिन सत्ता मद में चूर मुख्यमंत्री ये नहीं जानती कि जब जब समाजवादियों ने मुठ्ठियाँ भींची है और हुंकार भरी है  , इंक़लाब आया है और बदलाव लाया है |

रविवार, 11 सितंबर 2011

दिग भ्रमित नहीं बल्कि संयमित होने की आवश्यकता है

कितने नासमझ हैं निषाद समाज के युवा , 
जो अपने हितैषी और धुर विरोधी को पहचान तक नहीं पा रहे हैं | सवर्णवाद के छाया तले पल्लवित और पुष्पित इन नौजवानों को ये तक नहीं पता कि निषाद समाज का कितना गौरव शाली इतिहास रहा है | अपने इतिहास से प्रेरणा लेने की बजाय उससे बचते है | अपने आराध्यों ,महापुरुषों और मसीहाओं से बेखबर हैं | आज किस संघर्ष पूर्ण तरीके से हमारे निषाद भाई मुसीबत और गरीबी में अपने जीवन व्यतीत कर रहे हैं इसका अंदाजा हमारे उन निषाद युवाओं को कतई नहीं होगा जो मेट्रो जीवन के आदी हैं और धरातल से दूर मीडियाई वायरल से संक्रमित होकर बहक रहे हैं |
              माननीय मुलायम सिंह यादव ने हमेशा ही राष्ट्र की मुख्य धरा एवं धारा के दूर रहने वाले निषाद समाज के लोगों का साथ दिया है | चाहे SC आरक्षण का मामला हो या पारंपरिक रोज़गार धंधों को संरक्षण देने का , लोकसभा विधान सभा में उचित प्रतिनिधित्व देने की बात हो या निषाद समाज की समस्याओं को लेकर संघर्ष करने की बात हो, न माननीय मुलायम सिंह जी ही पीछे रहे न उनकी पार्टी | ऐसे में यदि उनके राजनैतिक विरोधी उन पर कितने ही आरोप क्यों न मढें, निषाद समाज की प्रतिक्रिया बेहद सधी, शालीन और मर्यादित होनी चाहिए | यहाँ सवाल राजनैतिक लाभ का नहीं लाखों निषाद भाइयों के विकास,आरक्षण और भागेदारी से जुडी उन आशाओं का है जिन्हें सवर्णवादी मानसिकता के लोग कुचलते चले आये हैं और उनकी कोशिश हमेशा से ही निषाद हितैषी उस नेतृत्व को कमज़ोर और निषाद समाज को गुमराह करने की रही है | हमारा एकमेव लक्ष्य निषाद समाज का SC आरक्षण है | और उसका ईमानदारी से समर्थन करने वाला हमारा मसीहा है, सम्माननीय है और हमारा है | फिर चाहे उस पर कितने ही राजनैतिक इलज़ाम क्यों न हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता |
हमारा लक्ष्य निर्धारित है |
हमारा सम्पूर्ण जीवन उस आम आदमी के लिए समर्पित है जो वास्तव में वंचित है और व्यवस्था द्वारा उसे पूरी तरह से उपेक्षित, उत्पीड़ित और वहिष्कृत कर दिया है | मछुआ समुदाय को देश की मुख्य धारा में लाना हमारा स्वप्न है और मछुआ आरक्षण संकल्प |
 भारत की महानतम एवं श्रेष्ठ निषाद संस्कृति व परम्परा से जुड़े भाई, जो वर्षों से शोषित एवं वंचित जीवन जी रहे हैं, उन्हें अत्याचार एवं जातिवादी भाई भतीजेवाद से मुक्ति दिला कर सम्मानित जीवन दिलाना हमारा लक्ष्य है | हमारे सामने इस वक़्त 2012 का चुनाव है जिसे निषाद समाज अपनी मान मर्यादा , जीवन मृत्यु और सर्वस्व मान कर लड़ने को तैयार बैठा है | इस अवसर पर दिग भ्रमित नहीं बल्कि संयमित होने की आवश्यकता है | ये चुनाव ही हमारे आरक्षण की दिशा तय करेगा ||

रविवार, 4 सितंबर 2011

कब तक और बांटोगे हमें ?

            
  प्रिय मित्रों,
                   मछुआ समुदाय पूरे भारत में लगभग 10 करोड़ की आबादी वाला समाज है | 150 से ज्यादा जातियों और उपजातियों में बंटा ये समाज भारत के प्रत्येक राज्य में अलग अलग स्टेटस रखता है | यानि किसी राज्य में SC, कहीं ST, कहीं विमुक्त जाति (NT) , कहीं OBC तो कहीं Gen | दिल्ली का मल्लाह SC ,यूपी का OBC , मध्य प्रदेश का ST |  मध्य प्रदेश की कहानी और भी अजीब है |यहाँ रैकवार OBC में, धीवर SC में, मल्लाह OBC में, मांझी, मझवार ST में , बथुड़ी (बाथम) ST में, नावडा व तुरैहा OBC में | ..........मजाक बना रखा है !!!  मध्य प्रदेश के ही हमारे कीर भाई ST में हैं जबकि हिमाचल प्रदेश के कीर SC में, तो पंजाब व राजस्थान में OBC में रखे गए हैं |  
            ये अन्याय मछुआरों के अतिरिक्त भारत में किसी अन्य समाज से बिलकुल भी नहीं है | ये गैरबराबरी और ज़हर का प्याला हमारे समाज के हिस्से में ही आया है | सरकारों ने इस समाज के लोगों को सौतेली औलाद की तरह रखा और कुछ न दिया गया | विकास की दौड़ को हमने तमाशबीन बनकर ही देखा और दूसरों की जीत पर तालियाँ ही बजाते रहे हैं | हमारे आरक्षण के नाम पर कदम कदम पर विसंगतियां खुद सरकारों ने ही पेश कीं, समाज को सिवाय झूठे आश्वासनों के अलावा आज तक कुछ नहीं दिया | योजनायें हमारे लिए आज भी सपना सरीखा हैं |
            हमारे लोग भी कितने सीधे हैं कि सरकार कोई सा भी प्रमाण पत्र दे , चुपचाप ले लेते हैं | विरोध तक नहीं करते | क्या ये सरकारों की धोखाधडी नहीं है अशिक्षित और कानूनी दांव पेचों से अनभिज्ञ लोगों से ? क्या कोई बता सकता है कि केवट, मल्लाह, मांझी (मझवार), नाविक में शाब्दिक रूप से कोई अंतर है ? भारत के प्रत्येक शब्दकोष में इनके मायने एक ही हैं तो ये कमज़र्फ सरकारें इसे अलग अलग करने पर क्यों तुली हैं ?.  
            फिशर मैन / मछुआरा शब्द बुरा नहीं हैं | एक दम स्पष्ट है, सही सामाजिक पहचान द्योतक है , पारंपरिक है, अपमान जनक तो कतई नहीं है | टाइटिल तो कुछ भी  लिख सकते हैं |

हमारी एक ही मांग है : Single Status, Single Plateform, Single Policy & Single Agenda
            स्पष्ट मछुआ नीति बना कर केंद्र सरकार अलग अलग प्रदेशों में बाँट कर रखे गए मछुआ समुदाय को एक ही स्टेटस प्रदान करे | फिर चाहे वो SC , ST या विमुक्त जाति (NT) ही क्यों न हो |

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

गणपति बाप्पा मोरिया ||

गणपति बाप्पा मोरिया ||
जंगलराज हुआ यूपी में,
अजब तमाशा होरिया ||
                               गणपति बाप्पा मोरिया ||
हाहाकार मचावे जनता ,
हात्थी वाला सोरिया ||
                                गणपति बाप्पा मोरिया ||
रिश्वतखोरी हुयी चरम पर,
अफसर सुनते लोरिया ||
                                 गणपति बाप्पा मोरिया ||
सड़कों पर होता है अब तो,
महिलाओं का खोरिया ||
                                 गणपति बाप्पा मोरिया ||
दलितों के शासन में देखो ,
दलित खड़ा कर जोरिया ||
                                 गणपति बाप्पा मोरिया ||
हे भगवान हटाओ जल्दी,
 नीला बिस्तर बोरिया ||
                                गणपति बाप्पा मोरिया ||