रविवार, 31 जुलाई 2011

सुब्रमण्यम स्वामी का मानसिक दिवालियापन

हाल में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट के तीन दिन बाद मुंबई के एक अंग्रेजी अखबार में छपे लेख में पूर्व केंद्रीयमंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने सुझाया है कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए और यहां गैर हिंदुओं से वोट देने का अधिकार छीन लेना चाहिए। उन्होंने कहा है कि मुस्लिमों या अन्या गैर हिंदू समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार तभी होना चाहिए जब वे गर्व से यह बात मानें कि उनके पूर्व हिंदू थे। इस्लामी आतंकवाद से निपटने के अपने तरीके सुझाते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने ये बातें कहीं। 
समाजवादी पार्टी सुब्रमण्यम स्वामी के इस बयान की घोर निंदा करते हुए इसे राष्ट्रद्रोह मानती है और मुस्लिम और अन्य गैर हिंदुओं से वोट देने का अधिकार छीन लेने की वकालत करने वाले लेख पर उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग करती है।
                            आये दिन टीवी पर मुंह फाड़ते नज़र आने वाले कांग्रेसी नेताओं ने स्वामी के इस बयान की आलोचना तो दूर, इस पर प्रतिक्रिया तक नहीं दी है | ताज्जुब ये है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने स्वामी के इस बयान का संज्ञान तक नहीं लिया है  कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए।

सोमवार, 25 जुलाई 2011

वीरांगना फूलन देवी को पुण्य तिथि पर शत-शत नमन


कमज़ोर, वंचित एवं उपेक्षित मछुआ समुदाय की मसीहा बहन वीरांगना फूलन देवी को 10वीं पुण्य तिथि पर शत-शत नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि |
मछुआ समुदाय आपके संघर्ष से प्रेरित हो कर अपने सामाजिक , शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक विकास की दिशा में आपके मार्गदर्शी सुझावों पर कार्य करता रहेगा और मछुआ आरक्षण के आपके अधूरे सपने को साकार करने के लिए अपने प्राण-प्रण से जुटा रहेगा | सामाजिक क्रांति के इस अंतिम मोर्चे पर आपका अभाव निःसंदेह पीड़ा दायक तो है किन्तु आपकी संघर्ष गाथा हमारे लिए ऊर्जा स्रोत बनकर सामने भी है |
               मछुआ समुदाय आपके सुझाये मार्ग पर चलने को संकल्परत है |

रविवार, 24 जुलाई 2011

सच्चा अम्बेडकरवादी वही जो समाजवादी

सच्चा समाजवादी कभी भी आरक्षण विरोधी नहीं हो सकता और सच्चा अम्बेडकरवादी समाजवादी न हो, ये हो ही नहीं सकता | क्योंकि समाजवादी व्यवस्था ने कमजोरों के लिए विशेष अवसरों की सदैव वकालत की है | जिसे कानून ने आरक्षण का नाम दिया है | लेकिन जो लोग इसी आरक्षण के सहारे आगे बढ़ गए और अपनी आजीविकाओं में परिवर्तन ले आये , इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि समाजवाद के खिलाफ वो लोग ही सबसे पहले आस्तीनें चढ़ाये घूम रहे हैं और दूसरों के आरक्षण का विरोध करते फिर रहे हैं | ये न सिर्फ मानवता के विरुद्ध है बल्कि उस अम्बेडकरवाद के भी खिलाफ है, जिसके वो अलमबरदार, सिपहसालार और तरफदार बन रहे हैं | इन छद्म अम्बेडकरवादियों को आरक्षण विरोध शोभा नहीं देता है | उनका ये विरोध डाल पर बैठ कर डाल को काटने जैसा ही है | अम्बेडकरवाद की बुनियाद समाजवाद ही तो है |इसलिए आवश्यकता समाजवाद के पोषण, संवर्धन और संरक्षण की है, न कि इसे कमज़ोर करने की | समाजवाद के कमज़ोर होने का तात्पर्य है पूंजीवाद का शक्तिशाली हो जाना | पूंजीवादी व्यवस्था में लंगोटी वाला कमाता है और धोती वाला खाता है| दलितों ,पिछड़ों और अल्संख्यकों का हित समाजवाद के आरोहण में है |

आइये भारत में समाजवादी समाज की स्थापना के डा लोहिया और डॉ अम्बेडकर के सपने को साकार करें |

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

आये कुत्ते खा गए, तू बैठी ढोल बजा

खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय,|
आये कुत्ते खा गए, तू बैठी ढोल बजाय || 
संभवतः 800 वर्ष पूर्व अमीर खुसरो द्वारा कहे गए इस दोहे में आज की उत्तर प्रदेश की राजनीति स्पष्तः द्रष्टिगोचर हो रही है |  मायावती जी सर्वजन राग गा रही हैं और दलित विरोधी नाच रहे हैं | अब मस्ती में डूब कर गाने वाले की आँखें बंद हो जाना स्वाभाविक ही है | इसलिए प्रदेश में बदती दलित उत्पीडन की घटनाओं से सरकार का कोई लेना देना नहीं रह गया है | 
जैसे ग़ज़ल गायकी खुले मंचों की शोभा से फिसल कर ऑडिटोरियम से होती हुयी पञ्च सितारा होटलों के रास्ते से गुज़र कर अब भव्य ड्राइंग रूमों की दासी बन बैठी है , वैसे ही दलित शोषित समाज की राजनीति DS4 ,बामसेफ और बहुजन के रास्ते होती हुई अब सर्वजन पर आकर अटक गयी है | जैसे भव्य ड्राइंग रूमों में अधलेटे , मसनदों पर औंधे पड़े  एवं शेष शैय्या धारी विष्णु की विश्राम मुद्रा में ग़ज़ल सुनने वालों को ग़ज़ल की A B C D भी पता नहीं होती, उनकी नज़र गाने वाले / वाली के लिवास व मेक अप पर ही रहती है और वे सिर्फ ताल का आनंद लेने आये होते हैं , उसी प्रकार सर्वजन की राज नीति करने वालों को दलितों की समस्याओं और उनके सामाजिक सरोकारों,  शिक्षा , विकास  ,उनके बढते उत्पीडन से कोई मतलब नहीं रह गया है  , ये तो केवल येन केन प्रकारेण सत्ता पाने के लिए लालायित हैं | 
बाबा साहेब ने जीवन भर जिस व्यवस्था से संघर्ष किया आज मायावती जी उन्ही से समझौता करके निसंदेह अम्बेडकर वादियों  का अपमान ही कर रहीं हैं | जिसके साथ संघर्ष ठहरा , उससे समझौता कैसा ?
दलित उत्पीडन के सारे रिकार्ड, दलित हितों का दिखावा करने वाली बसपा सरकार में टूट गए हैं | दलित अधिकारी कर्मचारी जितना बसपा सरकार में परेशान हुए हैं, उतना कभी नहीं रहे | शर्म आती है कहने में ,लेकिन कड़वा सच है कि दलित महिलाओं के सर्वाधिक शील भंग इसी सरकार में हुए , कई में तो बसपा विधायक नामज़द हैं | ये अनु०जाति / जनजाति आयोग की रिपोर्ट बताती है | एक जातिवादी मानसिकता रखकर बसपा सरकार दलितों में ही विभाजन की प्रष्ठ भूमि तैयार किये जा रही हैं | दलितों में ही एक तबका बना जा रहा है जो सत्ता के बावजूद कमज़ोर है, योजनाओं के बावजूद पीड़ित है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद शोषित है और दलितों की ही सरकार में बहिष्कृत है |  एक न एक दिन ये सर्वहारा और वंचित वर्ग अपने अधिकारों के लिए दलितों के ही मुकाबले आ जायेगा |
ऐसा नहीं कि मुख्य मंत्री को बढते दलित उत्पीडन की जानकारी नहीं होगी , मगर जो लोग जन्मदिन का मोटा चंदा दिए बैठे हैं, उन्हें कहीं तो सहूलियत दी जाएगी ..........

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

ज़मीनी हकीकत जाने बिना किस काम के राहुली दौरे ?

मित्रो,
राहुल फिर यूपी की यात्रा पर हैं | कांग्रेसी गदगद हैं कि युवराज का अनुभव बढ़ रहा है | भारत में रोड शो की जननी कांग्रेस
यूपी में चमत्कार की आस में बेकार ही जोर लगाये जा रही है | बसपाई गुंडों से जनता वैसे ही परेशान है | अपराध प्रदेश / बलात्कार प्रदेश  में जीना मुहाल है | रोजी रोटी की जद्दोजहद में कांग्रेसी उत्पाद ताबड़ तोड़ महंगाई बचा खुचा चैन-सुकून भी छीने डालती है | ऊपर से राहुल की मेहमान नवाजी, वो भी 30 -35 पुलिस वालों के साथ | पूरी बारात का खर्चा है भाई | कुछ राहत दी हो तो कोई साहस भी जुटाए | गरीब आदमी पिंड छुड़ाने को हाँ में हाँ तो मिलाएगा ही, कि अच्छा है जल्दी रवानगी डालें | लेकिन ये क्या आपने तो गोद में बच्चा उठा लिया | दनादन फोटो सेशन होने लगा | मीडियाई धमाचौकड़ी में गाँव वालों की समस्यों पर जींस चढ़ाये महिला पत्रकारों के अंग्रेजी सवाल और राहुल के अहमद पटेल्वी जवाब | पीपली लाइव की तर्ज़ पर बगलें झांकते गाँव वाले |
दर असल रोड शो का सही हिंदी रूपांतर "तमाशा" है जो कांग्रेस कर रही है | ज़मीनी हकीकत से दूर कांग्रेस जन समस्याओं को आज भी नहीं समझ पाई है | चुनाव जीतना तो दूर कांग्रेस प्रत्याशी तक तय नहीं कर पा रही | जनता के सरोकारों से दूर रहने वाले ड्राइंग रूम पालिटिक्स के माहिर कांग्रेसी मसनदी नेता अपने युवराज से करिश्माई कद की आस लगाये बैठे है , लेकिन जिनकी आस को कांग्रेसी मंहगाई ने हमेशा के लिए तोड़ डाला है वो किससे फ़रियाद करें |
बेहतर होगा कि कांग्रेस जनता के रुख को समझे और जन भावनाओं के विपरीत जाने का साहस कदापि न करे क्योंकि भय, भूख, लाचारी, बेकारी , अपराध, भ्रष्टाचार, अन्याय और घोर जातिवाद में त्राहि त्राहि कर रहा आम जनमानस स्पष्ट रूप से सत्ता परिवर्तन का मन बना चुका है और मायावी कुशासन से मुक्ति के लिए समाजवाद में ही अपना भविष्य ढूँढ रहा है |

सोमवार, 18 जुलाई 2011

आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 3 : दलित मुस्लिमों और दलित ईसाईयों से छुआछूत क्यों?

बड़ी बिडम्बना है कि देश की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत आज भी स्वतंत्र भारत में दोयम दर्जे का जीवन गुज़ार रहा है | निसंदेह ये न केवल दुर्भाग्य पूर्ण है बल्कि संविधान प्रेमियों के समक्ष विचारणीय ज्वलंत प्रश्न भी है | भारत में अनुसूचित जाति का आरक्षण सबसे पहले हिन्दुओं की सामाजिक रूप से बहिष्कृत एवं अछूत समझी जाने वाली जातियों के उत्थान हेतु घोषित किया गया | कालांतर में इसमें हिन्दू धर्म त्याग कर परिवर्तित हुए बौद्धों को भी शामिल कर लिया गया | (शायद कोर्ट द्वारा हुआ हो , मुझे कन्फर्म नहीं) | तत्पश्चात धीरे से इसमें सिखों को भी समायोजित कर लिया गया |

हैरत ये है कि सामाजिक वहिष्कार एवं छुआछूत का दंश झेलते चले आ रहे दलित समाज के वो लोग, जो बौद्धों के स्थान पर ईसाई धर्म में दीक्षित हो गए , चतुराई से धकिया कर किनारे ठिकाने लगा दिए गए | मजे
की बात ये है कि जो लोग अपने आप को रूलिंग कास्ट आफ इंडिया घोषित किये पड़े है या जो अम्बेडकरवाद का चहुँदिश डंका पीटें जा रहे हैं , उन्हें ये सब दिखाई क्यों नहीं पड़ रहा | दलित बौद्ध SC और दलित ईसाई GEN ? ये कैसा मानदंड है ? और अगर है भी, तो इसे बदला जाना चाहिए |

मुसलमानों की तमाम दलित जातियां ,जो 1956 से अद्यतन अनुसूचित जाति की सूची में वर्णित हैं , जैसे लालबेगी , हेला, धोबी आदि को ,कि मुस्लिम SC नहीं हो सकता , कहकर कब तक नागरिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहेगा ?

सरकार स्पष्ट करे कि अनुसूचित जाति का आरक्षण जाति के आधार पर है या धर्म के आधार पर |

यदि जाति के आधार पर है तो आरक्षण , सभी दलित जातियां चाहे फिर वो किसी भी धर्म
की क्यों न हों,यदि अपनी निर्योग्यता प्रमाणित करती हों, दिया जाना चाहिए और यदि आरक्षण में धर्म की बाध्यता है कि वो हिन्दू, सिख ,नव बौद्धों के लिए ही है, ईसाई या मुस्लिम के लिए नहीं | गलत है , विधिसम्मत तो हरगिज़ नहीं है | निसंदेह कहीं न कहीं इसके पीछे ठेकेदारी एवं जातिवादी दूषित मानसिकता छिपी हुयी है जो आरक्षण की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है |

रविवार, 17 जुलाई 2011

आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 2 : श्री छेदी लाल साथी ने कहा था

श्री छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में गठित सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के पेज 329 में वर्णित है कि "मल्लाह , केवट , चाई, सोरहिया, बिन्द, बाथम या बथुड़ी, मांझी, मुडियारी ,तियर ,तियार, तुरेहा या तुराहा, खुलवट , रैकवार , कैबर्त तथा निषाद , यह सब मल्लाह जाति के ही विभिन्न नाम हैं जो प्रदेश के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय बोलियों के कारण भिन्न भिन्न नामों से जाने जाते हैं | इन सब जातियों का मुख्य व्यवसाय नाव चलाना , मछली मारना, तथा जाल बुनना है |
इसी रिपोर्ट के पेज 328 में बिन्द जाति के सम्बन्ध में लिखा है कि यह जाति मछुए, नाव चालकों एवं केवट मल्लाहों से मिलती जुलती मानी जाति है |
इसी प्रकार रिपोर्ट के पेज 333 में धीमर / धीवर को ऐतिहासिक प्रष्ट भूमि के अंतर्गत उल्लेख किया है कि धीवर भारतीय समाज में हिन्दुओं में एक शूद्र जाति है | इस जाति का नाम संस्कृत के शब्द स्कंधकार तथा धीवर से बना है जिसका आशय है क्रमशः कंधे पर सामान धोने वाले एवं मछली पकड़ने वाले लोग | इसी से कहारा भी बना है | यह कहार जाति की पर्यायवाची जाति है |
उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की वर्तमान सूची में मछुआ समुदाय की कतिपय जातियों को जैसे मझवार,गोंड , खरबार , बेलदार, तुरेहा को शामिल तो किया गया है, किन्तु मछुआ समुदाय की अन्य जातियों जैसे केवट , मल्लाह, बिन्द, धीवर , धीमर, बाथम , रैकवार , गोड़िया, मांझी एवं तुराहा आदि को छोड़ दिया गया है , जबकि ये सभी जातियां मछुआ समुदाय की उप जातियां अथवा पर्यायवाची जातियां हैं जिनका रहन - सहन , रीति - रिवाज और धंधा -पेशा एक जैसा है और इन सबका आपस में खान पान व रोटी-बेटी का सम्बन्ध है | ये तथ्य इनके मानव शास्त्रीय अध्ययन में साबित हो चुकें है |"
इन समस्त जातियों के विकास के लिए स्व छेदी लाल साथी ने इस समुदाय को अनुसूचित जातियों की भांति सुविधाएं देने की संस्तुतियां सरकार से की थीं | आज स्व छेदी लाल साथी आयोग की रिपोर्ट को धूल चाटते 32 साल होने जा रहे हैं |
बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने अम्बेडकर महासभा नाम से दूकान चलाने वाले लोग स्व छेदी लाल साथी जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी शान में कसीदे तो गढ़ते हैं लेकिन जब छेदी लाल साथी की रिपोर्ट लागू होने की बात आती है तो ये दोगले चरित्र के लोग कोर्ट पहुँच कर मायावती के इशारे पर स्टे आर्डर ले आते हैं |
अम्बेडकर महासभा के लोग यदि स्व छेदी लाल साथी जी को वाकई सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनकी रिपोर्ट लागू होने की राह में रोड़ा न बने |

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

नहीं बहकते कांसी राम तो बन गए होते 1996 में ही प्रधानमंत्री

        चौंकिए मत , ये बात सच है कि कांसीराम जी अगर भाजपाई दामन पकडे बैठी मायावती की त्रिया हठ के आगे मजबूर न हुये होते तो माननीय मुलायम सिंह यादव जी के प्रयासों से सपा बसपा गठबंधन के नेता के तौर पर संयुक्त मोर्चे की सरकार के प्रधान मंत्री बन गए होते | आज बाबा साहब के जिस मिशन की मायावती देशाटन करके  दुहाई देती घूम रही हैं वो दलित पिछड़ा एकता से 1996 में ही पूरा हो गया होता |  दूंढ कर लाये गए और जबरदस्ती प्रधानमंत्री बनाये गए देवेगौडा की जगह कांसी राम जी देश के पहले निर्वाचित दलित प्रधान मंत्री होते |
60 : 40  के आपसी समझौते के आधार पर नेता जी और कांसीराम ने गठबंधन किया था जिसकी प्रथम विजय मुलायम सिंह जी के नेतृत्व में बनी सपा बसपा की सरकार थी | अगले चरण में 60 : 40 के समझौते के तहत लोकसभा चुनाव लड़ना था और कांसीराम जी को गठ बंधन का नेता बनाना था | 
लेकिन ऐन वक़्त पर कुटिल भाजपाइयों ने मायावती को गरिया लिया और बहन जी बाबा साहब का मिशन बीच में ही छोड़ उन लोगों के साथ हो लीं, जिन्हें वे अब तक मनुवादी , ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी कहती चली आयीं थीं | अपने निजी फायदे के लिए मायावती ने कांसीराम जी की वर्षों की तपस्या पर पानी फेर दिया |उसके बाद क्या हुआ हम सब अच्छी तरह से जानते हैं............. | 
बसपा से चुन चुन कर कांसी समथकों को अपमानित करके निकाल दिया गया | मायावती ने कांसीराम जी को प्रधान मंत्री तो दूर की बात रही, लोकसभा सांसद बनने के लिए तरसा दिया | कांसीराम जी लोकसभा का तकरीबन हर चुनाव हारते रहे या यूं कहें बसपा उन्हें हराती रही | सिर्फ एक बार नेता जी के सहयोग से ही कांसीराम जी इटावा से लोकसभा चुनाव जीते | 
मायावती की जिद के आगे सपा बसपा गठबंधन ही नहीं टूटा बल्कि माननीय मुलायम सिंह के सहयोग से बाबा साहब डा आंबेडकर के मिशन को पूरा करने के lagbhag करीब पहुँच चुके कांसीराम जी का दिल और सपना भी हमेशा के लिए टूट गया |

शनिवार, 2 जुलाई 2011

आरक्षण में घोर विसंगति पार्ट 1 : मछुआ समुदाय के साथ खुला अन्याय

                       आरक्षण में घोर विसंगति पार्ट 1  : मछुआ समुदाय के साथ खुला अन्याय 
 जमुना नदी के उस पार का भू भाग जो दिल्ली प्रदेश में आता है, वहां का मल्लाह मछुआ समुदाय अनुसूचित जाति में सूची बद्ध है और वह क्षेत्र जो उत्तर प्रदेश में आता है यानि आगरा एवं गाजिआबाद जिले का मल्लाह विमुक्त जाति में | यूपी के अन्य क्षेत्र का अन्य पिछड़ा वर्ग में | आरक्षण की इस घोर विसंगति का क्या कारण है ? 
     गंगा नदी के अंतिम छोर पर स्थित पश्चिम बंगाल का मल्लाह , केवट, बिन्द, चाई , तियर, कैबर्ता, नाम्शूद्र , पटनी, झालो, मालो, जलिया , महिष्य्दास अनुसूचित जाति में , तो उत्तर प्रदेश का मल्लाह , केवट बिन्द ,कहार, धीवर पिछड़ी जाति में | क्या दिल्ली और पश्चिम बंगाल का मल्लाह जो यूपी से माइग्रेट है वहां जाकर कैसे अचानक अछूत हो गया ? या दिल्ली,  बंगाल का मल्लाह यूपी में आते ही संपन्न और सछूत हो जायेगा | जबकि सबमे रोटी और बेटी के रिश्ते हैं | 
१९५५ से पूर्व जब अस्पर्श्यता अपराध निवारण अधिनियम नहीं बना था तब अनुसूचित जाति में किसी भी जाति को शामिल करने का मानक छुआछूत हुआ करता था | १९५५ के बाद से अधिनियम लागू होने के पश्चात छुआछूत को मानक बनाना अवैधानिक है | संविधान के अनु 17 के अंतर्गत छुआछूत  के भेद भाव को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है | वर्ष २००५ में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जन जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ द्वारा निषाद ,मल्लाह , केवट, बिन्द, मांझी एवं धीवर जातियों का मानव शास्त्रीय अध्ययन कराया गया जिसमे 52 % छुआछूत पाई गयी | अधिकारिता मंत्रालय का यह कहना कि मछुआ समुदाय की जातियों के प्रति,  शतप्रतिशत छुआछूत नहीं है अतः इन्हें अनुसूचित जातियों में शामिल नहीं किया जा सकता , संविधान का खुला मखौल उड़ाना   है |
वर्तमान में किसी भी होटल ,मंदिर , रेस्तरां , धर्मशाला और पिक्चर हाल में जाति पूछ कर प्रवेश नहीं दिया जाता और न ही पूछा जाता है कि फलां होटल या जलपान गृह किस जाति वाले का है, तो मछुआ समुदाय के आरक्षण पर छुआछूत के 100 % का सवाल क्यों |
ऐसा लगता है जो लोग सीढ़ी चढ़कर ऊपर छत पर जा पहुंचे हैं, वे सीढ़ी को अपने साथ ही खींच कर ऊपर ले गए हैं ताकि कोई दूसरा छत पर न आ जाये |


शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

मायावती इस्तीफ़ा दें

 डा सचान की हत्या ने साबित कर दिया है कि लोकशाही की खाल ओढ़ कर बैठी मायावी हिटलरशाही हुकूमत ने सरकारी कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं हैं | मायावती के हुक्म के सामने कानून बौना पड गया है | प्रमोशन पाने को बेताब और सजातीय चमचागीरी में कुछ भी कर गुजरने को आमादा अफसरान अपनी सत्य निष्ठां , प्रतिज्ञा ,शपथ और जन सेवा भाव को तिलांजलि दिए बैठे हैं |  कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सरकारी तंत्र पूरी तरह गुलाम और लकवा ग्रस्त हो चुका है | 
सबसे सुरक्षित समझीं जाने वाली प्रदेश की जेलें बसपा के गुंडाराज में अपराध का सञ्चालन केंद्र बन गयी हैं | डा सचान ने आत्महत्या की हो या उनकी हत्या हुयी हो  ,ये स्पष्ट हो गया है कि जिस तरह से कानपूर से विशेषतः ट्रांसफर होकर आये अनुभवी जेलर ने अपनी विशेष भूमिका अदा की है उससे सरकारी तंत्र खासकर जेलों में पुलिसिया मनमानी की नंगी तस्वीर सामने आई है |
सरकारी तंत्र की बचकानी और हास्यास्पद रिपोर्टें, हत्या का मुक़दमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज होना !!!! अरे भाई कोई आदमी सड़क पर तो घूम नहीं रहा था कि कोई आया और मार कर चला गया, जेल में अज्ञात आदमी कैसे आगया ? सरकार जांच की बात कह कर और समय नहीं काट सकती | ..........जवाब देना होगा |
प्रदेश के गृहमंत्री और कारागार मंत्री का ज़िम्मा थाम रही आदरणीय बहन जी जेलों में हो रहे जघन्य हत्या कांडों की ज़िम्मेदारी लें और तत्काल इस्तीफ़ा दें |