शुक्रवार, 21 मार्च 2014

निडर होकर कहें अपनी बात

गर हमारे पास कोई अच्छा विचार है जो बिखरे हुए समाज को जोड़ने में सहायक हो सकता है तो उसे अवश्य व्यक्त करना चाहिए । विचारों से ही व्यक्ति का व्यक्तित्व परिलक्षित होता है । जिस समाज में लेखक / वक्ता नहीं होते वह समाज गूंगा माना जाता है । मौन रहकर अपनी पीड़ा को सहन करना ही उसकी नियति बनजाती हैं । विचार से संकल्प बनता है और संकल्पों से सिद्धांत प्रतिपादित होते हैं । सिद्धांतों से आदर्श स्थापित होते हैं और उच्च आदर्शों से ही सामाजिक परिवर्तन संभव होता है । इसलिए बिना विचार के सामाजिक परिवर्तन की कल्पना निरर्थक है ।
वास्तव में हमारे समाज की फूट और एकता में विफलता का कारण
त्वरित लाभ हैं ……हम त्वरित लाभ चाहते हैं । विचारों का शोधन किये बिना ही हम एक दम समर्थन का सपना देखने लगते हैं , इसके विपरीत जमीनी स्तर पर हम और हमारा व्यक्तित्व कहीं नहीं होता । हम दूसरों पर आसानी से दोषारोपण कर देते हैं जबकि उसके परिश्रम का मोल या तो जानते नहीं या जानना नहीं चाहते ।
सिद्धांत और आदर्श स्थापित करने में जीवन गुजर जाता है । हम बिना सिद्धांतों पर चले आदर्शवाद की खाल ओढना चाहते हैं ।
हर व्यक्ति के सोचने का एक अलग नजरिया होता है । इसमें उसके आसपास के समाज,शिक्षा,संस्कार, कामधंधे ,आजीविका की स्पष्ट छाप होती है । किसान , मजदूर ,व्यापारी , छात्र , नेता आदि सबकी सोच अलग अलग होती है । देश में लोकतान्त्रिक प्रणाली है । कुछ लोग राजनैतिक नजरिये से भी अपनी सोच रखते हैं । राजनीतिक सोच बुरी हो ,ऐसा हर वक़्त नहीं होता । कुछ लोग हर बात को राजनैतिक नजरिये से ही देखते हैं ,तो कुछ राजनीति को ही बुरे नजरिये से देखते हैं।

अपनी बात मनवाने का सबसे बढ़िया उपाय है अपनी कही बात को अपने ऊपर लागू करके दिखाना । जो प्रत्यक्ष दिखेगा और जिसका प्रभाव लोगों को चमत्कृत कर देगा उसे कोई भी सहर्ष स्वीकार करना चाहेगा अन्यथा की स्थिति में बात केवल बात बनकर रह जाएगी, इसलिए हमें पहले विकल्प सुझाना होगा और उदाहरण बनना होगा ....…… समाज तभी स्वीकार करेगा ।