गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

आज का एकलव्य

आज का एकलव्य ,
द्रोणाचार्य के लाख मांगने पर भी,
नहीं देगा अपना अंगूठा |
बल्कि ,
दिखा कर ठेंगा ,
मुंह चिडायेगा ,
उस द्रोणाचारी व्यवस्था का,
जिसने निषादों की प्रतिभाओं को,
पीछे धकेलने का ठेका लिया था शासन से |
आज का एकलव्य ,
सोचेगा नहीं एक पल भी ,
चला देगा तीर फ़ौरन ,
उस अर्जुन पर ,
जिसके जातीय दंभ और अज्ञान के समक्ष,
बौना ठहरा दिया गया था ,
एकलव्य का धनुर्कौशल्य |
आज का एकलव्य ,
खींच लेगा ज़ुबान,द्रोणाचार्य की,
अंगूठा ठगने की हिमाक़त पर ,
ताकि दोबारा न पड़े हिम्मत ,
किसी और को एकलव्य बनाने की ।

आभार -श्री अरुण कुमार तुरैहा (रामपुर )
  

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