मंगलवार, 19 जून 2012

राष्ट्रपति चुनाव और समाजवादी पार्टी

राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज चुका है । केंद्र में सरकार संचालक होने के नाते कांग्रेस दल की जिम्मेदारी है कि  वो देश को एक निष्पक्ष ,योग्य और उर्जावान राष्ट्रपति दे । यह सत्य है कि केंद्र की कांग्रेस सरकार पूर्ण बहुमत में नहीं है और राष्ट्रपति चुनाव में सर्वसम्मति और सभी दलों को साथ लेकर चलने की मंशा रखती है । बेहतर होता कि भारत का राष्ट्रपति दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर निर्विरोध चुना जाता । इससे जहाँ स्वस्थ संवैधानिक परंपरा स्थापित होती वहीँ राष्ट्रपति पर दल विशेष का मोहरा या ठप्पा होने का दाग भी नहीं लगता । किन्तु बहुमत की संसदीय परंपरा में सत्तारूढ़ दल भी अपना बहुमत साबित करने में पीछे नहीं रहना चाहेगा । कांग्रेस द्वारा नामित वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को पुराना संसदीय अनुभव है और वे लगातार किसी न किसी पद पर रहकर देश को अपनी सेवाएँ देते रहे हैं ।
कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति के इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की महति भूमिका को बहुत पहले ही जान लिया था  है । बिना समाजवादी पार्टी के सहयोग के कांग्रेस का राष्ट्रपति चुना जाना असंभव कार्य था । कांग्रेस के राष्ट्रपति प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी का समाजवादी पार्टी ने समर्थन कर देश को मध्यावधि चुनाव से बचाया है ।महंगाई से जूझती जनता पर अनावश्यक
मध्यावधि चुनाव लादने से अच्छा था कि कांग्रेस के प्रत्याशी का समर्थन किया जाए । ये बात गौर करने लायक है कि यदि कांग्रेस का प्रत्याशी चुनाव हार जाता और भाजपा का प्रत्याशी जीतता तो प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को नैतिकतावश  इस्तीफ़ा देना पड़ता, देश मध्यावधि चुनाव की चपेट में आता और अगली बार भाजपा को दोगुनी ताक़त से सत्ता में आने कोई नहीं रोक पाता । इस प्रकार समाजवादी पार्टी ने दूरदर्शिता का परिचय देकर जहाँ देश को अनावश्यक मध्यावधि चुनाव से मुक्ति दिलाई बल्कि भाजपा की कमर तोड़ने का काम भी किया है ताकि 2014 तक भाजपा सिर्फ अफ़सोस ही मनाती रहे । सांप्रदायिक शक्तियों से समाजवादी पार्टी सदैव मुकाबला करती रही है और आगे भी करती रहेगी ।
नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव के कुशल दिशा निर्देशन में राष्ट्रपति चुनाव में लगातार दूसरी बार समाजवादी पार्टी ने अपनी उच्च रणनैतिक क्षमता , आत्मविश्वास और अहमियत को प्रमाणित किया है | डॉ लोहिया का कथन सत्य साबित हुआ कि भारतीय राजनीति में समाजवादी आन्दोलन की भूमिका सदैव प्रभावी, प्रासंगिक, अग्रणी और निर्णायक रहेगी एवं समाजवादियों व समाजवाद को उपेक्षित करने वाली सत्ता ज्यादा दिनों तक चल नहीं पायेगी |

शनिवार, 16 जून 2012

कन्नौज के मायने ....

कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में सपा प्रत्याशी श्रीमती डिम्पल यादव  के निर्विरोध निर्वाचन ने समाजवादियों को जश्न मनाने का जल्द ही दूसरा अवसर प्रदान किया है । कार्यकर्त्ता खुश भी हैं और हतप्रभ भी, कि उन्हें प्रचार और अपनी क्षमता प्रदर्शित करने  का भरपूर मौका हाथ से जाते दिखा | वहीँ जनता में संतोष की लहर है कि कन्नौज का सीधा दोहरा सम्बन्ध विकास से जुड़ गया है । इस सब के बीच फिरोजाबाद कहीं पीछे छूटता नज़र आया ।
यकीनन अगर फिरोजाबाद सामने नहीं आता तो कन्नौज भी नहीं हुआ होता । फिरोजाबाद ने समाजवादियों को संभलने और अपने संघर्ष को पुनर्परिभाषित करने पर मजबूर तो किया ही,  साथ ही मुखरता के साथ जनसमस्याओं से भिड़ने का माद्दा भी पैदा किया । आताताई मायाराज से समाजवादियों का संघर्ष मुखरित हुआ तो लखनऊ को भी लाल रंग में रंगते देर न लगी । लूट तंत्र से आजिज़ जनता ने भी अपने सही पैरोकारों को पहचानने में भूल नहीं की और समाजवादियों को नेताजी के बेमिसाल संघर्षों और अनुभवों में पिरोया एक नया सशक्त  ,युवा ,विकसित और जमीनी हस्ताक्षर युक्त नेतृत्व मिला ।
कन्नौज विजय वास्तव में अनूठी तो है ही ,स्पष्ट कर रही है कि  आने वाले लोकसभा चुनाव में प्रायः हर सीट पर यही स्थिति  होने वाली है । विधान सभा चुनाव में पड़ी जबरदस्त मार से विपक्ष अभी तक सीधा भी नहीं हो पाया है । समाजवादी पार्टी के विरुद्ध प्रत्याशी चुनने में विपक्षियों को नाकों चने चबाने पड़  रहे हैं । ये हाल तब है जब कि दूसरे दलों के नेताओं का सपा में प्रवेश फिलहाल बंद है और शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर ही चंद  लोगों की इंट्री हुयी है । प्रतिबन्ध हटते  ही जो भगदड़ विपक्षी दलों में मचने वाली है ,उसका अंदाजा भर कन्नौज से लगाया जा सकता है । वास्तव में कन्नौज समाजवादियों का मक्का है । डॉ लोहिया की कर्मस्थली कन्नौज  में पुष्पित पल्लवित समाजवादी विचारधारा को परवान चढ़ते देखना निसंदेह देश वासियों के लिए एक सुखद अनुभव तो है ही भारतीय राजनीति  में समाजवाद की आवश्यकता और प्रासंगिकता को भी घोषित करता है ।
2014 समाजवादियों के असल दमखम की परीक्षा लेने वाला है जिसकी पटकथा कन्नौज लिख चुका है ।