मंगलवार, 10 जनवरी 2012

और टाट में पर्दानशीं हुयी माया.............


मायावती की मूर्तियाँ अब और भी डरावनी हो गयीं हैं | टाट और सुतली में लिपटे मायावती के बुत किसी "ममी" से कम नहीं लग रहे | टाट और सुतली में लिपटे हथिनी और हाथी अब अपने नए आवरण से आसानी से मुक्त होने वाले भी नहीं हैं | बसपा के जंगल राज और लूटतंत्र से आजिज़ जनता बलात्कार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का स्पष्ट संकेत दे चुकी है | ऐसे में भला नयी सरकार को क्या पड़ी जो मायावती के टाट के नकाब को उतारने की जेहमत करे | ये संकेत है प्रकृति का | आज बुत कैद हो गए ,निसंदेह आने वाले वक़्त में मायावती का जेल जाना निश्चित है | आखिर पांच सालों की लूट और घोटालों का हिसाब भी तो देना पड़ेगा बहन जी को | ये नायाब मिसाल है मूर्तियाँ ढकने की | विश्व के इतिहास में कहीं भी ऐसा नहीं हुआ है | सत्ता परिवर्तन पर या क्रांति के परिणाम स्वरुप बड़े बड़े तानाशाहों के बुत तोड़ दिए गए या उपेक्षित छोड़ दिए गए, मगर सत्ता में रहते हुए ऐसा अपमान और छीछालेदर शायद ही किसी को भोगनी पड़ी हो | यही तो लोकतंत्र की खूबी है | माया की ममियां अहंकार और तानशाही का नमूना तो हैं ही, ये चेतावनी है उन नेतांओं के लिए जो पांच वर्ष की तानाशाही का ख्वाब देखते हैं | मजेदार बात ये है कि जनता चुनाव आयोग के इस फैसले को सही बताते हुए ताली पीट कर हंस रही है |  माया की ममियां फिलहाल चर्चा और आकर्षण का केंद्र तो बन ही गयीं हैं |
क्या खूब कहा है किसी ने --- गम दिया बुतों ने तो खुदा याद आया

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