गुरुवार, 19 जनवरी 2012

जय निषाद !! जय समाजवाद !!

निषाद वीरों !!

मूक दर्शक नहीं हो तुम,
तुम्हारे मूक होने को,
इन लोगों ने गूंगा-बहरा मान लिया है |
कभी न बहने वाला पानी ठहरा मान लिया है ||
इन्हें बता दो,
जब- जब भी प्रलय आया है
जब- जब भी दुनिया बदली है
पानी ने बड़ा किरदार निभाया है |

लेकिन ये पानी भी,
तुम्हारे सामने कहीं टिक नहीं पाया है ||

जय हिंद !! जय निषाद !! जय समाजवाद !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें