सोमवार, 16 जनवरी 2012

आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 5 : फाइलों में धूल फांक रही है गुहार

              कई राज्यों  के कश्यप ,निषाद, केवट, मल्लाह और बिन्द समेत एक दर्जन से अधिक जातियों को अनुसूचित जाति एससी या अनुसूचित जनजाति एसटी में शामिल करने की गुहार वर्षों से संसद की फाइलों में धूल फांक रही है। अब तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। बिहार और उत्तर प्रदेश में कम से कम एक दर्जन जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है, जबकि इसे एससी- एसटी में शामिल करने की मांग लंबे समय से जारी है, लेकिन संसदीय प्रक्रियाओं और केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच कथित खींचतान के कारण यह मुद्दा लंबे समय से लटका हुआ है। निषाद समुदाय को एससीएसटी में शामिल कराने के लिए लंबे समय से प्रयासरत है कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, दिल्ली और हरियाणा में निषाद समुदाय से जुड़ी जातियों मल्लाह, केवट, वनवासी एवं कुछ अन्य जातियों को अनुसूचित जाति और मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी राज्यों में इसे अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है। इसके कारण बिहार और उत्तर प्रदेश के निषाद समुदाय को वे सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, जो अन्य राज्यों में इस समुदाय को प्राप्त हैं। , लेकिन इस बारे में कोई सकारात्मक पहल नहीं हो पाई है और यह मामला फाइलों में उलझा हुआ है। कई राज्यों में नूनिया, निषाद, केवट, कश्यप, मल्लाह, कहार, तुरहा , कानू, नाई, पाल, दास, प्रजापति, ततमा, बिन्द, धुनिया, सेवक आदि जातियां बदतर स्थिति में जीवन व्यतीत कर रही हैं और उन्हें भी एससीएसटी की तरह ही हर प्रकार का लाभ दिया जाना चाहिए। उन्होंने इन जातियों की समजिल एवं आर्थिक स्थिति की कई बार अध्ययन दल गठित करके समीक्षा भी कराई जाचुकी है और सर्वेक्षण के आधार पर उन्हें एससीएसटी की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की संस्तुतियां भी सरकारों को प्राप्त हो चुकी है। लेकिन राजनैतिक नफ़ा नुक्सान तोलने वाली सरकारों ने हमेशा इस मसले को लम्बा खींचना चाहा है | 
                    हालांकि जनजातीय मामलों के केन्द्रीय  मंत्री किशोर चन्द्र देव ने इन विसंगतियों के बारे में सदन में स्वीकार किया था कि कुछ जातियों को एक राज्य में एससीएसटी में.तो दूसरे राज्य में उसे ओबीसी में रखा गया है। किसी किसी  राज्य में यही जातियां सामान्य वर्ग में रखी गई हैं। जब कि मछुआ समुदाय के अतिरिक्त किसी अन्य समाज से यह भेदभाव कहीं नहीं है |

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