शनिवार, 3 दिसंबर 2011

एडजस्टमेंट नहीं बल्कि अधिकार दो

कांग्रेस कहती है कि धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता | जब कि धर्म के नाम पर आरक्षण दिया जा रहा है | ये एक सर्व विदित सत्य है कि अनूसूचित जातियों को दिए जाने आरक्षण में धार्मिक बाध्यता है |  शुरू में ये केवल हिन्दुओं के लिए था | धीरे से इसमें सिखों को , तत्पश्चात न्यायालय ने बौद्धों को भी समावेशित करदिया |
आज ईसाईयों और मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण से क्यों वंचित किया जा रहा है ? बाल्मीकि  बौद्ध SC और बाल्मीकि  ईसाई GEN ? ये कैसा मानदंड है ? आरक्षण में धर्म की बाध्यता है कि वो हिन्दू, सिख ,नव बौद्धों के लिए ही है, ईसाई या मुस्लिम के लिए नहीं | गलत है , विधिसम्मत तो हरगिज़ नहीं है | निसंदेह कहीं न कहीं इसके पीछे ठेकेदारी एवं जातिवादी दूषित मानसिकता छिपी हुयी है जो आरक्षण की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है |
मायावती ने मछुआ समुदाय के आरक्षण का विरोध ये कह कर किया कि पहले SC का कोटा बढाया जाना चाहिए | आज जब बिना कोटा बढ़ाये मुस्लिमों को 27 % OBC  कोटे में ही एडजस्ट किया जा रहा है तो मायावती क्यों खामोश है ? वजह साफ़ है मछुआ समुदाय के आरक्षण से प्रभावित होने वाले लोग मायावती के थे |
हमारी मांग है केंद्र सरकार मुस्लिमों को 27 % OBC  कोटे में एडजस्ट न करे बल्कि संविधान में संशोधन करके मुसलमानों के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान करे ताकि समूची मुस्लिम कौम को आरक्षण का वास्तविक लाभ मिल सके | कोटे के अन्दर कोटा देने का प्रस्ताव  इलाहाबाद  उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किया जा चुका है 2001  में | मजे कि बात ये है कि उसे भी कांग्रेस के नेता अशोक यादव -संभल लोकसभा प्रत्याशी  ने रद्द कराया था |

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