गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बाबा साहेब डा०भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं |

प्रिय मित्रों,
दलितों,शोषितों,वंचितों तथा पिछड़े - अतिपिछडे वर्गों के मसीहा, भारत ही नहीं अपितु विश्व में मानवाधिकारों के सच्चे पैरोकार, विश्व में अतुलनीय भारतीय संविधान के शिल्पी, भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डा०भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस की १२० वीं वर्षगाँठ के पुनीत अवसर पर समस्त देश व प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं |
अत्यधिक सामाजिक अत्याचार के भुक्त भोगी, असहनीय अन्याय के अनुभवी और बहिष्कृत एवं सामाजिक भेदभाव का दंश झेल चुके बाबा साहेब डा० अम्बेडकर ने सदियों से उजड़े, पिछड़े, दलित, शोषित, पीड़ित, वंचित एवं बहिष्कृत जातियों को दलित घोषित कर संविधान में सामाजिक न्याय व्यवस्था का प्रावधान करके  उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान किया | देश के दलितों को राष्ट्र की मुख्य धरा एवं धारा से जोड़ने वाली आरक्षण व्यवस्था के आप प्रणेता रहे | उसी का सुखद एवं दूरगामी परिणाम हुआ कि अनेक लोग अपने जीवन स्तर व आजीविकाओं में परिवर्तन लाकर लगभग सामाजिक बराबरी का जीवन जी रहे हैं|
किन्तु खेद है, आज अम्बेडकरवादियों की दलितों की ही सरकार में उपेक्षा की जा रही है | अम्बेडकरवादी हाशिये पर हैं और दलित विरोधी सत्ता के स्वामी हुए जाते हैं | बाबा साहेब ने जीवन भर जिस व्यवस्था से संघर्ष किया आज मायावती जी उन्ही से समझौता करके निसंदेह अम्बेडकर वादियों  का अपमान ही कर रहीं हैं | जिसके साथ संघर्ष ठहरा , उससे समझौता कैसा ?
दलित उत्पीडन के सारे रिकार्ड, दलित हितों का दिखावा करने वाली बसपा सरकार में टूट गए हैं | दलित अधिकारी कर्मचारी जितना बसपा सरकार में परेशान हुए हैं, उतना कभी नहीं रहे | शर्म आती है कहने में ,लेकिन कड़वा सच है कि दलित महिलाओं के सर्वाधिक शील भंग इसी सरकार में हुए , कई में तो बसपा विधायक नामज़द हैं | ये अनु०जाति / जनजाति आयोग की रिपोर्ट बताती है |
                इतना ही नहीं, दलितों का दम भरने वाले , जो स्वयं को तथाकथित रूप से अम्बेडकरवादी भी घोषित किये हुए हैं , एक जातिवादी मानसिकता रखकर दलितों में ही विभाजन की प्रष्ठ भूमि तैयार किये जा रहे हैं | दलितों में ही एक तबका बना जा रहा है जो सत्ता के बावजूद कमज़ोर है, योजनाओं के बावजूद पीड़ित है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद शोषित है और दलितों की ही सरकार में बहिष्कृत है | यदि ये सर्वहारा और वंचित वर्ग अपने अधिकारों के लिए दलितों के ही मुकाबले आ गया तो दलितों में विभाजन का दोषी कौन होगा ?
ये बाबा साहेब के मिशन को पीछे धकेलने की और बाबासाहेब का कद छोटा करने की मनुवादी साजिश है जिसमे कुछ सत्ताखोर दलित भी शामिल हैं |
आइये संकट की इस घडी में विचार करें कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित राजनीति की दशा और दिशा क्या है और वास्तव में इसे कहाँ होना चाहिए ? ये ज्वलंत प्रश्न हैं दलित चिंतकों के लिए, ये चुनौतियां हैं अम्बेडकर वादियों के लिए और ये सवाल हैं संविधान प्रेमियों के लिए | दलित राजनीति का लक्ष्य येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाना नहीं बल्कि सम्मान पूर्वक दलितों एवं वंचितों का पुनर्पद्स्थापन और खुशहाल व विकसित जीवन यापन होना चाहिए |
सत्ताखोर दलित नेताओं के हाथों से यदि मिशन आजाद करा सके तो यही बाबा साहेब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी | 

1 टिप्पणी:

  1. हम भी तो बाबा साहेब डा० अम्बेडकर के अनुयाई हैं | हमारे हाथ तो खाली / झूठा बर्तन तक नहीं आया, जब कि लोग मलाई चाट रहे हैं | वंचित दलित जाग / भाग गए तो लाभान्वित दलितों को ही मुश्किलें पेश आयेंगी |

    कमज़ोर और अल्पसंख्यक दलितों के लिए भी कुछ प्रावधान होना चाहिए | दलितों में भी समाजवाद होना चाहिए मेरे भाई ............................या फिर कम से कम मुंह तो मत चिढाओ |

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