सोमवार, 16 मई 2016

विचार जगाओ , नेतृत्व अपने आप पैदा होगा

दरणीय बाबू मनोहर लाल जी, बाबू जयपाल सिंह कश्यप और बहन फूलन देवी जी की एकमात्र थाती यही थी कि उन्होंने समाज को उर्वरा सोच दी | व्यक्तिगत पूंजी जुटाए बिना उन्होंने लगातार सामाजिक पूंजी का संचयन किया और सामाजिक धरोहर बनकर समाज को दिशा देने का अविस्मरणीय कार्य किया | मैं स्वयं को इन्ही महापुरुषों के महान संघर्षों से उपजा एक साधारण कार्यकर्ता समझता हूँ जिसने निषादों के लिए सख्त और बंजर समझे जाने वाली बुन्देलखंडी धरा पर अपने सामाजिक विचार को धार देने की अनथक कोशिश की और आज भी उसी संकल्प के साथ अनवरत जुटा हूँ | जब मैंने 1989 में राजनीति में आने का फैसला किया तो क्षेत्र के जातीय मठाधीश कहे जाने वाले ठाकुर पंडितों की हंसी छूट गयी थी | निषादों की नेतागिरी उपहास का पात्र ठहरा दी गयी, लेकिन जब सदियों से वंचित और उपेक्षित समाज को सामाजिक न्याय का ठौर मिला तो निषाद मत राजनीति में एकाएक निर्णायक समझे जाने लगे | हाशिये पर पड़ा बहिष्कृत समाज अब बुन्देलखंडी सियासत की धुरी बन गया था | अब हमारे लोगों को जिताने और हराने के हिसाब से टिकट दिए जाने लगे | यह युवाओं की कड़ी मेहनत और जज्बे का उछाल था जिसने मुझे 29 वर्ष की आयु में विधानसभा और 32 वें वर्ष की आयु में संसद की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया बदलते वक़्त में मछुआ आरक्षण आन्दोलन को निषाद युवाओं ने अपनी आवश्यकता समझा और अपनी अस्मिता मान सम्मान और आस्तित्व से जोड़कर इसे व्यापक रूप दिया | आज समाज का युवा स्वतंत्र सोच रखता है , वह अपने अधिकार के लिए ढकोसलों पाखण्ड और भेदभाव के चक्रव्यूह को तोड़ने को आतुर दिखाई देता है तो सत्ता में बैठे निरंकुश सांसद विधायकों और मंत्रियों की आलोचना से भी नहीं हिचकता है | यह बदलाव भी इन्ही दस पंद्रह वर्षों में द्रष्टिगोचर हुआ है जिसने हमारे युवाओं को न सिर्फ विचारशील बनांया बल्कि उनमे सामाजिक सोच उभारते हुए बुजुर्गों के संघर्षों को आदर्श बनाकर नए जीवन पथ गड़ने / चुनने के लिए प्रेरित किया और राजनीति में नए अवसर पैदा किये निषाद समाज में आज सहारनपुर से लेकर बलिया तक और ललितपुर से लखीमपुरखीरी तक संघर्षशील चरित्र के धनी युवाओं की भरमार है | उत्तर प्रदेश ही नहीं, बिहार बंगाल उत्तराखंड पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र से लेकर गुजरात ओड़िसा के समुद्री तटों तक निषाद युवा आज करवट ले रहा है तथा हर परिस्थिति और बदलाव पर पैनी नज़र रखे हुए हैं, कम से कम अनभिज्ञ तो कतई नहीं
वो मुतमईन है पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए

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