डा सचान की हत्या ने साबित कर दिया है कि लोकशाही की खाल ओढ़ कर बैठी मायावी हिटलरशाही हुकूमत ने सरकारी कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं हैं | मायावती के हुक्म के सामने कानून बौना पड गया है | प्रमोशन पाने को बेताब और सजातीय चमचागीरी में कुछ भी कर गुजरने को आमादा अफसरान अपनी सत्य निष्ठां , प्रतिज्ञा ,शपथ और जन सेवा भाव को तिलांजलि दिए बैठे हैं | कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सरकारी तंत्र पूरी तरह गुलाम और लकवा ग्रस्त हो चुका है |
सबसे सुरक्षित समझीं जाने वाली प्रदेश की जेलें बसपा के गुंडाराज में अपराध का सञ्चालन केंद्र बन गयी हैं | डा सचान ने आत्महत्या की हो या उनकी हत्या हुयी हो ,ये स्पष्ट हो गया है कि जिस तरह से कानपूर से विशेषतः ट्रांसफर होकर आये अनुभवी जेलर ने अपनी विशेष भूमिका अदा की है उससे सरकारी तंत्र खासकर जेलों में पुलिसिया मनमानी की नंगी तस्वीर सामने आई है |
सरकारी तंत्र की बचकानी और हास्यास्पद रिपोर्टें, हत्या का मुक़दमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज होना !!!! अरे भाई कोई आदमी सड़क पर तो घूम नहीं रहा था कि कोई आया और मार कर चला गया, जेल में अज्ञात आदमी कैसे आगया ? सरकार जांच की बात कह कर और समय नहीं काट सकती | ..........जवाब देना होगा |
प्रदेश के गृहमंत्री और कारागार मंत्री का ज़िम्मा थाम रही आदरणीय बहन जी जेलों में हो रहे जघन्य हत्या कांडों की ज़िम्मेदारी लें और तत्काल इस्तीफ़ा दें |
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