जमुना नदी के उस पार का भू भाग जो दिल्ली प्रदेश में आता है, वहां का मल्लाह मछुआ समुदाय अनुसूचित जाति में सूची बद्ध है और वह क्षेत्र जो उत्तर प्रदेश में आता है यानि आगरा एवं गाजिआबाद जिले का मल्लाह विमुक्त जाति में | यूपी के अन्य क्षेत्र का अन्य पिछड़ा वर्ग में | आरक्षण की इस घोर विसंगति का क्या कारण है ?
गंगा नदी के अंतिम छोर पर स्थित पश्चिम बंगाल का मल्लाह , केवट, बिन्द, चाई , तियर, कैबर्ता, नाम्शूद्र , पटनी, झालो, मालो, जलिया , महिष्य्दास अनुसूचित जाति में , तो उत्तर प्रदेश का मल्लाह , केवट बिन्द ,कहार, धीवर पिछड़ी जाति में | क्या दिल्ली और पश्चिम बंगाल का मल्लाह जो यूपी से माइग्रेट है वहां जाकर कैसे अचानक अछूत हो गया ? या दिल्ली, बंगाल का मल्लाह यूपी में आते ही संपन्न और सछूत हो जायेगा | जबकि सबमे रोटी और बेटी के रिश्ते हैं |
१९५५ से पूर्व जब अस्पर्श्यता अपराध निवारण अधिनियम नहीं बना था तब अनुसूचित जाति में किसी भी जाति को शामिल करने का मानक छुआछूत हुआ करता था | १९५५ के बाद से अधिनियम लागू होने के पश्चात छुआछूत को मानक बनाना अवैधानिक है | संविधान के अनु 17 के अंतर्गत छुआछूत के भेद भाव को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है | वर्ष २००५ में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जन जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ द्वारा निषाद ,मल्लाह , केवट, बिन्द, मांझी एवं धीवर जातियों का मानव शास्त्रीय अध्ययन कराया गया जिसमे 52 % छुआछूत पाई गयी | अधिकारिता मंत्रालय का यह कहना कि मछुआ समुदाय की जातियों के प्रति, शतप्रतिशत छुआछूत नहीं है अतः इन्हें अनुसूचित जातियों में शामिल नहीं किया जा सकता , संविधान का खुला मखौल उड़ाना है |
वर्तमान में किसी भी होटल ,मंदिर , रेस्तरां , धर्मशाला और पिक्चर हाल में जाति पूछ कर प्रवेश नहीं दिया जाता और न ही पूछा जाता है कि फलां होटल या जलपान गृह किस जाति वाले का है, तो मछुआ समुदाय के आरक्षण पर छुआछूत के 100 % का सवाल क्यों |
ऐसा लगता है जो लोग सीढ़ी चढ़कर ऊपर छत पर जा पहुंचे हैं, वे सीढ़ी को अपने साथ ही खींच कर ऊपर ले गए हैं ताकि कोई दूसरा छत पर न आ जाये |
मैं आपका ध्यान केवट जाति के लिए एक विशेष समस्या की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ |
जवाब देंहटाएंउत्तर प्रदेश की एवं केंद्र की OBC लिस्ट में केवट जाति की स्पेलिंग "KEWAT" दर्शाई गई है जबकि अधिकतर लोग इसकी स्पेलिंग "KEVAT" लिखते हैं, जिससे कि ख़ासकर उन लोगों को जो उन राज्यों में रह रहे हैं जहाँ हिन्दी राज्यभाषा नहीं है और उन्हे अपना OBC का प्रमाण पत्र अँग्रेज़ी में बनवाना पड़ता है, भारी मुश्किलों का समान पड़ता है | स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट में जाति की स्पेलिंग "KEVAT" होने पर उनका OBC प्रमाण पत्र नहीं बन पाता | अतः इस विषय में उचित कदम उठा कर "KEVAT" को भी केंद्र और प्रदेश की OBC सूची में शामिल करवायें |