चौंकिए मत , ये बात सच है कि कांसीराम जी अगर भाजपाई दामन पकडे बैठी मायावती की त्रिया हठ के आगे मजबूर न हुये होते तो माननीय मुलायम सिंह यादव जी के प्रयासों से सपा बसपा गठबंधन के नेता के तौर पर संयुक्त मोर्चे की सरकार के प्रधान मंत्री बन गए होते | आज बाबा साहब के जिस मिशन की मायावती देशाटन करके दुहाई देती घूम रही हैं वो दलित पिछड़ा एकता से 1996 में ही पूरा हो गया होता | दूंढ कर लाये गए और जबरदस्ती प्रधानमंत्री बनाये गए देवेगौडा की जगह कांसी राम जी देश के पहले निर्वाचित दलित प्रधान मंत्री होते |
60 : 40 के आपसी समझौते के आधार पर नेता जी और कांसीराम ने गठबंधन किया था जिसकी प्रथम विजय मुलायम सिंह जी के नेतृत्व में बनी सपा बसपा की सरकार थी | अगले चरण में 60 : 40 के समझौते के तहत लोकसभा चुनाव लड़ना था और कांसीराम जी को गठ बंधन का नेता बनाना था |
लेकिन ऐन वक़्त पर कुटिल भाजपाइयों ने मायावती को गरिया लिया और बहन जी बाबा साहब का मिशन बीच में ही छोड़ उन लोगों के साथ हो लीं, जिन्हें वे अब तक मनुवादी , ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी कहती चली आयीं थीं | अपने निजी फायदे के लिए मायावती ने कांसीराम जी की वर्षों की तपस्या पर पानी फेर दिया |उसके बाद क्या हुआ हम सब अच्छी तरह से जानते हैं............. |
बसपा से चुन चुन कर कांसी समथकों को अपमानित करके निकाल दिया गया | मायावती ने कांसीराम जी को प्रधान मंत्री तो दूर की बात रही, लोकसभा सांसद बनने के लिए तरसा दिया | कांसीराम जी लोकसभा का तकरीबन हर चुनाव हारते रहे या यूं कहें बसपा उन्हें हराती रही | सिर्फ एक बार नेता जी के सहयोग से ही कांसीराम जी इटावा से लोकसभा चुनाव जीते |
मायावती की जिद के आगे सपा बसपा गठबंधन ही नहीं टूटा बल्कि माननीय मुलायम सिंह के सहयोग से बाबा साहब डा आंबेडकर के मिशन को पूरा करने के lagbhag करीब पहुँच चुके कांसीराम जी का दिल और सपना भी हमेशा के लिए टूट गया |
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