"माया का महंगाई विरोध दिखावा "
प्रदेश भर में आज बसपा सरकार का महंगाई विरोध दिखावा ही साबित हुआ | रस्म अदायगी के तौर पर नाम मात्र को विरोध किया गया| असली मकसद साल भर पहले पैसा लेकर प्रत्याशी घोषित किये गए नेताओं का जनाधार देखना था |ताकि प्रत्याशी की आमदनी और ताक़त का सही अंदाजा लग सके |जो जितने आदमी जुटाएगा उसका टिकट बचा रहेगा | रिपोर्ट देने में LIU से लेकर DM और SP की सेवाएं भी लीं गईं | कई चतुर सुजान थे जो कोआरडीनेटरों को रातों रात प्रसन्न कर आये , अब सीधों की गर्दन नापने की बारी है |
पजेरो , मोंटेरो , एंडेवर , हैमर और फार्चुनर के अति शीतल वातानुकूलित टॉप माडलों पे सवार होकर आये बसपाइयों के टोले, सड़कों पे खड़े होकर लगातार चू रहे पसीने को पोंछते हुए पेट्रो उत्पादों की बढ़ी कीमतों व महंगाई के विरोध में बहन जी का गुणगान कर रहे थे |
एक साहब सज्जन थे , सो पूछ बैठे कि सारा गेंहू बिचौलियों ने खरीद लिया ,प्रशासन खामोश तमाशा देखे जाता है , कोई कुछ करता क्यों नहीं ? कभी बी० एड ० वालों की भर्ती के आदेश, अगले दिन रोक, फिर आदेश | शिक्षा मित्रों को ट्रेनिंग, फिर रोक, फिर ट्रेनिंग | रोज़गार सेवकों की दोबारा भर्ती , फिर शासनादेश वापस ,अब क्या होगा ये भी तय नहीं | मुख्य सेविका के पांच लाख अभ्यर्थियों को सीधे साक्षात्कार के ज़रिये कैसे रख लोगे, कहाँ बुला कर लोगे इतने लोगों का इंटरव्यू | चपरासी के लिए परीक्षा और अफसर के लिए मात्र इंटरव्यू | ये कैसा निजाम है ? ऐसा लगता है सरकार अंतिम समय में अपना नियंत्रण खो रही है |
बसपाई सन्न ! बोले इस सवाल का महंगाई से क्या ताल्लुक | फिर सोच कर बोले -हमारी बहन जी को दैवीय शक्तियां हासिल हैं , वो सब कंट्रोल कर लेंगी | ये भर्ती वर्ती में कोर्ट का चक्कर है, बहन जी से क्या लेना देना | सतीश मिश्र का पूरा खानदान जज हो गया, तो इसका मतलब ये तो नहीं उन्हें यही काम सौंप दिया जाए | बहन जी के पर्सनल मुक़दमे कौन देखेगा ? रही बात इंटर व्यू की, तो क्या परेशानी है | अम्बेडकर पार्क में काफी जगह है , पांच लाख की भीड़ तो एक कोने में आ जायेगी, सब वहीँ निपट जायेगा | एक बार केद्र तो हाथ आ जाये, महंगाई भी जाती रहेगी | और तुम कौन पत्रकार हो, जो सवाल पूछ रहे हो...........लग रहा है विरोधी पार्टी के आदमी हो , यहाँ गड़बड़ करने आये हो|
सज्जन बोले - सवाल पूछने का मेरा साहस कहाँ ? सरकार विधायकों के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही हमारी क्या हैसियत है | अलबत्ता कांग्रेस वाले ज़रूर सूचना का अधिकार दे गए हैं, लेकिन मिल वो भी नहीं रही है | सूचना आयोग में कौन धक्के खाय !!!!!
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