बाबा रामदेव के अनशन से बौखलाई कांग्रेस बताये कि आखिर बाबा की ऐसी कौन सी मांग लोकतंत्र के प्रतिकूल , विधि विरुद्ध और संविधान सम्मत नहीं थी जो कांग्रेसी मैनेजरों को नागवार गुजरी और नौबत यहाँ तक आन पड़ी कि रौलेट एक्ट के दिन याद आ गए | वो तो गनीमत रही कि प्रेस वालों का भय था , वर्ना 5 राज्यों में चुनाव परिणामों से सत्ता मद में चूर कांग्रेस यदि जलियाँवाला बाग़ की पुनरावृति भी रामलीला मैदान में करवा देती तो कोई आश्चर्य नहीं होता |
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है | कांग्रेस हमेशा से ही जन भावनाओं के प्रतिकूल काम करने की आदी रही है | भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय "आपातकाल " इसी कांग्रेस के सत्ता मद का नमूना था | दिल्ली में सिखों का क़त्ले आम और स्वर्ण मंदिर पर फौज की बर्बरियत इसी कांग्रेस का फैसला था | जबरदस्ती नसबंदी और मुसलमानों के पिछड़ेपन को सच्चर कमिटी द्वारा बाकायदा कसूरवार ठहराई गयी कांग्रेस अब पुलिसिया ज़ुल्म की ताक़त पर , PAC के आतंक के बूते और फौज के बूटों तले आम आदमी की आवाज़ को रोकने और दबाने का जो मंसूबा पाले बैठी है , उससे कांग्रेस का गन्दा और विभत्स चेहरा क्रूरता के साथ ही सामने आया है|
निश्चित ही अब यू ० पी० में कांग्रेस की खैर नहीं | और साहब हो भी क्यों नहीं, देश का मतदाता कोई आँख मूंदे तो बैठा है नहीं |
विदेशों जमा काला धन अगर राष्ट्रीय संपत्ति घोषित हो जाये और उसे वहां से मांगा कर यदि देश के विकास में लगा दिया जाये तो इसमें सोनिया, सिब्बल और दिग्विजय को क्या आपत्ति है ? अब भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी कांग्रेस अपनी और भद्द न पिटवाए | कहीं ऐसा न हो जाये कि देश का हर नागरिक रामदेव की राह चल पड़े और कांग्रेस बगलें झांकती नज़र आये |
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