शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

योगी जी के दौरे से बुंदेले निराश

प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ के झांसी दौरे से प्यासे बुन्देलखण्डी ठगा सा महसूस कर रहे हैं। योगी जी के आगमन से जनमानस आशान्वित था कि प्यासी बुन्देली धरा को कोई बड़ी जलपरियोजना का तोहफ़ा जरूर मिलेगा किन्तु चित्रकूट एवं झाँसी मंडलों के जनपद वासियों को उस समय घोर निराशा हाथ लगी जब मुख्यमंत्री जी ने जलसमस्या से निबटने के लिए दो साल का वक़्त माँगा।
प्यासे पशु चारे की कमी से बेमौत मर रहे हैं। गौ रक्षक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। तालाब गर्मी की शुरुआत में ही खाली हो चुक हैं। पशुओं के लिए बनाये गए चारा केंद्र सूने पड़े हैं।
मैंने मार्च माह में बुन्देलखण्ड की समस्याओं को लेकर राज्यसभा में संकल्प के जरिये आवाज़ उठाई थी किन्तु एक भी बुन्देली सांसद ने लोकसभा में उक्त मांगो को तवज्जो नहीं दी। केंद्र सरकार मेरी मांग के अनुरूप छोटे छोटे चैक डैम ग्राम सभाओं में बनवाये और इसके लिये चौदहवें वित्त आयोग की धनराशि अतिरिक्त बढ़ाये। साथ ही नलकूप अनुदान की राशि दोगुनी करते हुए शासकीय नलकूपों की संख्या बढ़ाये ।
प्यासे तन और मन को सड़क से नही, संकल्प से जोड़िये। दिल्ली आगरा झांसी तो पहले से ही फोरलेन स्वर्णिम चतुर्भुज से जुड़ा है। उन्हें सड़क नहीं पानी चाहिए , दो साल बहुत ज्यादा हैं जो आपने मांगे हैं।

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

बसपा भाजपा नहीं चाहती थीं 17 जातियों को आरक्षण, लेकिन CM अखिलेश ने कर दिखाया

खनऊ । समाजवादी पार्टी कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में सपा के राष्ट्रीय महासचिव विशंभर प्रसाद निषाद ने कहा कि 22 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश की सरकार की कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से 17 जातियों ( केवट, मल्लाह, निषाद, कहार, कश्यप, धीवर, धीमर, बाथम, कुम्हार, प्रजापति, भर, राजभर, मछुआ, गोड़िया, मांझी, बिन्द, तुरहा ) जातियों को अनुसूचित जाति में परिभाषित करने के लिए प्रस्ताव पास कर इन जातियों को उनका हक दिलाने का काम किया है। इसके बाद अब प्रदेश में अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए शासनादेश जारी किया गया है। इस ऐतिहासिक फैसले से 17 जातियों के लोग मुख्यमन्त्री की जमकर तारीफ कर रहे हैं। हम मुख्यमंत्री को इस कदम के लिये हार्दिक बधाई देते हैं और उनका आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि सीएम अखिलेश यादव ने एक फैसले से तकरीबन एक करोड़ से अधिक लोगों को अपना मुरीद बना लिया है, जो अपने इस यशस्वी नेता को दोबारा सीएम बनाएंगे।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने इन सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण की व्यवस्था देकर समाज के भविष्य को बदलने का काम किया है। जबकि वहीं बसपा ने 2007 में इस जारी शासनादेश को निरस्त करने काम किया। इतना ही नहीं बसपा ने इस आरक्षण को निरस्त करके केन्द्र से प्रस्ताव वापस मंगा कर यह साबित कर दिया कि वह केवट, बिन्द, मल्लाह, कुम्हार, राजभर की सबसे बडी दुश्मन हैं। बसपा ने हमेशा इन जातियों को धोखा देने का काम किया है। 

वहीं दूसरी तरफ जब मुख्यमंत्री ने वर्तमान सरकार में कई बार प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा तो भाजपा की मोदी सरकार ने वापस करने का काम किया। इससे मोदी सरकार ने यह सिद्ध कर दिया कि यह 17 जातियों के आरक्षण के घोर विरोधी हैं। इसलिए आज पूरे हिन्दुस्तान में राजभर, केवट, बिन्द, मल्लाह आदि 17 जातियों के मसीहा मुलायम सिंह यादव व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं। उन्होंने आरक्षण का लाभ देकर साबित कर दिया कि मुख्यमंत्री की कथनी व करनी में कोई अन्तर नहीं है । 17 जातियों के लोग इस फैसले से खुश होकर यह संकल्प लेकर निकलेंगे कि 2017 के चुनाव में मुख्यमंत्री को पुनः बहुमत देकर मुख्यमंत्री बनाने का काम करेंगे।
उन्होंने  इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने पर मुख्यमंत्री को बधाई देते हुए कहा  कि आजादी के बाद न्यायोचित अधिकार देकर मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक फैसला लेने का काम किया है। इस दौरान व्यास जी गोंड, डॉ अच्छे लाल निषाद, पप्पू लाल निषाद, रामदुलार राजभर,  रामपाल प्रजापति, विजय कश्यप, कुलदीप तुरैहा, कमल तुरैहा, दिलीप रैकवार आदि उपस्थित थे।

बुधवार, 15 जून 2016

कैराना का संघी सच

टनाओ को सांप्रदायिक रंग देकर उनपर राजनीति करने में भाजपा सिद्धहस्त रही है । सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बूते वोटों की क्षुद्र राजनीति खेलना और समाज में तनाव फैलाकर उन्मादी सियासत करना भाजपा और उसकी संघी जमात का बाएं हाथ का खेल रहा है ।
मुज़फ्फरनगर दंगों के बूते 2014 फ़तेह करनी वाली भाजपा अब कैराना के जरिये उत्तर प्रदेश में सत्ता प्राप्ति का ख्वाब देख रही है । भाजपा के वरिष्ठ कहे जाने वाले गुर्जर नेता श्री हुकुम सिंह जी आजकल सूची सूची खेल रहे हैं । फर्जी और मनगढ़ंत सूचियों के जरिये भाजपा नेता यह साबित करना चाहते हैं कि यूपी के कैराना क़स्बे में निवासरत हिन्दू समुदाय के लोग कैराना के मुस्लिम भाइयों के आतंक से परेशान होकर शहर छोड़कर भाग रहे है। हद तो ये है कि पलायन के अलावा भाजपा नेता सनसनी फैलाने के लिए क्षेत्र के विभिन्न आपराधिक घटनाओं में मार दिए गए हिन्दू लोगों की सूची भी बना रहे हैं ताकि उनकी हत्या के लिए दूसरे सम्प्रदाय के लोगों  को दोषी ठहरा कर तथा लोगों में भय फैलाकर वोटों की तुच्छ राजनीति कर सकें | कैराना की तुलना कश्मीर से करने को उतावले भाजपा नेता दरअसल अपनी बेटी को कैराना से विधायक बनवाना चाहते हैं | इन सारे आरोपों को लगाने वाले भाजपा नेता खुद कैराना से दशको से विधायक और वर्तमान सांसद भी हैं यह पलायन उनकी नाक के नीचे दशकों से होता रहा और सांसद जी की नींद 2017 नजदीक देखकर यूँही नहीं टूटी |
पुलिस जांच में भाजपा नेता की दोनों सूचियाँ फर्जी साबित हो चुकी है |
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1-पहली सूची में वर्णित अनेक परिवार दशकों पहले कैराना छोड़कर मुंबई दिल्ली शिफ्ट हो गए हैं , पांच साल पहले कई परिवार रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए जबकि भाजपा नेता इसकी वजह साम्प्रदायिक बताते नहीं थक रहे | दिल्ली एनसीआर में बेहतर रोजगार साधन होने के कारण पश्चिम यूपी के निवासियों का दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र में बस जाना आम बात है | यह सिलसिला 60 के दशक आरम्भ हुआ और आज भी अनवरत जारी है | रोजगार के लिए हिन्दू ही क्यूँ , अनेक मुस्लिम भाई खाड़ी के देशों तक में जा बसे हैं | जिसको किसी धार्मिक द्रष्टि से देखा जाना कतई अनुचित है |
2-भाजपा नेता की दूसरी सूची उन हिन्दू व्यवसायियों की है जिनकी हत्या पिछले एक दशक में की जा चुकी है | सूची प्रकाशित करने के पीछे भाजपा नेता का शातिर दिमाग यह सोचकर काम कर रहा है ताकि इसके जरिये लोगों को उकसाया जा सके कि एक धर्म के व्यवसाइयों की हत्याएं हो रही है | जबकि हकीकत यह है कि पुलिसिया रिकार्ड में इन हत्याओं में वांछित लोग हिन्दू ही हैं कई में तो मृतकों के रिश्तेदार दोषी सिद्ध हुए |
ऐसा नहीं है कि भाजपा नेता इस असलियत से वाकिफ नहीं है बल्कि वे सब कुछ जानते हुए भी तथ्य छुपा कर इस सूची  पर धार्मिक राजनीतिकरण कर उन्माद की नीवं पर कैराना के जरिये एक और मुज़फ्फरनगर देखना चाहते हैं | हैरत ये है कि मीडिया भी  बिना किसी पड़ताल के ऐसी ख़बरें दिखाकर सामाजिक एकता के ताने बाने को कुतरने की संघी साजिश में लगा हुआ है 

बुधवार, 18 मई 2016

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद

प्रिय मित्रों !
आप सब सामाजिक बन्धु बांधव एवं ईष्ट मित्रगण के शुभाशीष एवं मंगलकामनाओं से मेरा राज्यसभा हेतु समाजवादी पार्टी ने नामांकन सुनिश्चित किया है |
मेरा राज्यसभा में चयन इस बात को प्रमाणित करता है कि समाज और जमीन से जुड़े मजबूत कार्यकर्ता की मेहनत की कद्र पार्टी नेतृत्व ने सदैव की है और उसे माननीय मुलायम सिंह यादव जी ने आगे बढ़कर उस कार्यकर्ता को और तराशा है , निखारा है और सम्मानित किया है ।
राज्यसभा में पुनः नामांकित करने के लिए सपा नेतृत्व का हार्दिक धन्यवाद । 
आदरणीय नेताजी सच्चे कार्यकर्ता की मेहनत को जौहरी की भांति पहचानने में भूल नहीं करते ।
लोकसभा चुनाव में नेतृत्व विहीन हो चुके मछुआ समुदाय को, जो कि सामाजिक मुख्यधारा में आने के लिए आज भी हाथ पैर मार रहा है , देश की संसद में समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व देकर माननीय मुलायम सिंह जी ने हमें आवाज़ देने का अवसर प्रदान किया है । अब निसंदेह ही हम अपनी 17 अति पिछड़ी जातियों की आवाज़ को संसद में उठाने के लिए दूसरों के मोहताज़ नहीं रहेंगे और अपने SC आरक्षण पर और अधिक प्रखर और मुखर होकर बात रखेंगे। समाजवादी पार्टी अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को संरक्षण देकर उसके चेहरे पर मुस्कान लाने को कटिबद्ध है ।
मुझे बेहद ख़ुशी है कि मेरे  साथियों ने मेरे लिए बहुत दुआएं की और उनका प्यार और आशीर्वाद मेरे लिए शुभ समाचार लाया |
पुनश्च सभी का आभार एवं धन्यवाद
आप सबकी शुभकामना का सतत आकांक्षी


विशम्भर प्रसाद निषाद
सांसद / राष्ट्रीय महासचिव
समाजवादी पार्टी

सोमवार, 16 मई 2016

विचार जगाओ , नेतृत्व अपने आप पैदा होगा

दरणीय बाबू मनोहर लाल जी, बाबू जयपाल सिंह कश्यप और बहन फूलन देवी जी की एकमात्र थाती यही थी कि उन्होंने समाज को उर्वरा सोच दी | व्यक्तिगत पूंजी जुटाए बिना उन्होंने लगातार सामाजिक पूंजी का संचयन किया और सामाजिक धरोहर बनकर समाज को दिशा देने का अविस्मरणीय कार्य किया | मैं स्वयं को इन्ही महापुरुषों के महान संघर्षों से उपजा एक साधारण कार्यकर्ता समझता हूँ जिसने निषादों के लिए सख्त और बंजर समझे जाने वाली बुन्देलखंडी धरा पर अपने सामाजिक विचार को धार देने की अनथक कोशिश की और आज भी उसी संकल्प के साथ अनवरत जुटा हूँ | जब मैंने 1989 में राजनीति में आने का फैसला किया तो क्षेत्र के जातीय मठाधीश कहे जाने वाले ठाकुर पंडितों की हंसी छूट गयी थी | निषादों की नेतागिरी उपहास का पात्र ठहरा दी गयी, लेकिन जब सदियों से वंचित और उपेक्षित समाज को सामाजिक न्याय का ठौर मिला तो निषाद मत राजनीति में एकाएक निर्णायक समझे जाने लगे | हाशिये पर पड़ा बहिष्कृत समाज अब बुन्देलखंडी सियासत की धुरी बन गया था | अब हमारे लोगों को जिताने और हराने के हिसाब से टिकट दिए जाने लगे | यह युवाओं की कड़ी मेहनत और जज्बे का उछाल था जिसने मुझे 29 वर्ष की आयु में विधानसभा और 32 वें वर्ष की आयु में संसद की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया बदलते वक़्त में मछुआ आरक्षण आन्दोलन को निषाद युवाओं ने अपनी आवश्यकता समझा और अपनी अस्मिता मान सम्मान और आस्तित्व से जोड़कर इसे व्यापक रूप दिया | आज समाज का युवा स्वतंत्र सोच रखता है , वह अपने अधिकार के लिए ढकोसलों पाखण्ड और भेदभाव के चक्रव्यूह को तोड़ने को आतुर दिखाई देता है तो सत्ता में बैठे निरंकुश सांसद विधायकों और मंत्रियों की आलोचना से भी नहीं हिचकता है | यह बदलाव भी इन्ही दस पंद्रह वर्षों में द्रष्टिगोचर हुआ है जिसने हमारे युवाओं को न सिर्फ विचारशील बनांया बल्कि उनमे सामाजिक सोच उभारते हुए बुजुर्गों के संघर्षों को आदर्श बनाकर नए जीवन पथ गड़ने / चुनने के लिए प्रेरित किया और राजनीति में नए अवसर पैदा किये निषाद समाज में आज सहारनपुर से लेकर बलिया तक और ललितपुर से लखीमपुरखीरी तक संघर्षशील चरित्र के धनी युवाओं की भरमार है | उत्तर प्रदेश ही नहीं, बिहार बंगाल उत्तराखंड पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र से लेकर गुजरात ओड़िसा के समुद्री तटों तक निषाद युवा आज करवट ले रहा है तथा हर परिस्थिति और बदलाव पर पैनी नज़र रखे हुए हैं, कम से कम अनभिज्ञ तो कतई नहीं
वो मुतमईन है पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए

बुधवार, 22 जुलाई 2015

मछुआ संघर्षों का पर्याय : जुलाई माह


 यूँ तो 10 जुलाई सरकारी तौर पर मछुआ दिवस के रूप में प्रचलित है लेकिन अधिकार विहीन उद्वेलित मछुआ समाज ने जून से आरम्भ हुए संघर्ष के बाद जुलाई में अपने आन्दोलनों को पैना करने में कोई कोर कसर नहीं उठा छोड़ी।
उत्तर प्रदेश, बिहार और मप्र का सम्पूर्ण मछुआ समाज आज करवट ले रहा है।
बिहार में अब तक सत्ता की लड़ाई से बाहर रहे और मूक दर्शक की भूमिका निभाने वाले मछुआ समुदाय ने इस बार कमर कसते हुए अब तक के सबसे बड़े संघर्ष का शंखनाद राजधानी पटना से किया है । बिहार विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए बिहार की निषाद, केवट, साहनी, मल्लाह, नोनिया, बिन्द, बेलदार, चंद्रवंशी कहार, रावनी ,रमानी और तुरहा जातियों के लोग आस्तित्व की लड़ाई को तेज कर राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिए संगठित होकर संघर्ष कर रहे हैं । राजनैतिक दलों के लिए नफे नुकसान का बायस बनी इन जातियों के लोग आरक्षण की लड़ाई के साथ सत्ता में पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी राजनैतिक दलों से सुनिश्चित करा लेना चाहते हैं । जातीय राजनीती का गढ़ रहा बिहार इस दफा यादव मुस्लिम दलित समीकरण के साथ साथ मछुआ समीकरण से भी पहली बार प्रभावित होने जा रहा है । जुलाई माह में इस दिशा में सम्बंधित पक्षों ने जमकर मेहनत की है जिसका सकारात्मक परिणाम अभी से नज़र आने लगा है ।
वहीँ उप्र के मछुआ समुदाय के लोग केंद्र की मोदी सरकार के निषाद विरोधी फैसलों के तहत 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने संबंधी उप्र सरकार के प्रस्ताव को निरस्त करने पर दिल्ली घेर कर संसद सत्र बाधित करने का ऐलान किये हुए है । 5 जुलाई को लखनऊ में आहूत तैयारी बैठक में उमड़े जनसैलाब ने एक विशाल आंदोलन की नींव रखते हुए स्पष्ट कर दिया कि अब अधिकारों की लड़ाई में मछुआ समाज बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से भी पीछे नहीं हटेगा । SC आरक्षण हमारी मांग नहीं, संकल्प है और इसके लिए भारतीय मछुआ महासंघ के कार्यकर्ता प्रदेश के जिलों की जमीन नापते हुए समाज को 29 जुलाई के लिए तैयार कर रहे हैं। आशा है एक ऐतिहासिक आंदोलन दिल्ली की सरजमीन पर आकार लेगा जिसके दूरगामी परिणाम परिलक्षित होंगे ।
आज 22 जुलाई 2015 से ही मप्र के सभी मांझी (भोई, कहार, ढिमर, केवट, मल्लाह, निषाद, बाथम, रायकवार, नावड़ा , तुराहा, सोंधिया, जलारी एवं मुड़ियारी आदि ) भाई अपने अनुसूचित जनजाति आरक्षण के अधिकार के लिए उज्जैन महाकाल की भूमि से भोज की धरती भोपाल तक पैदल मार्च कर मांझी अधिकारों के संघर्ष का बिगुल बजाने जा रहे हैं और प्रदेश की शिवराज सरकार के झूठे वायदों की पोल खोलते हुए मुख्यमंत्री निवास के समक्ष मुंडन करवा कर विरोध दर्ज़ करायेंगे। दांडी मार्च की याद दिलाने वाला मांझी भाइयों का ऐतिहासिक भोपाल मार्च मांझी संघर्ष के इतिहास में एक नए अध्याय का सूत्रपात करेगा ।
सामाजिक संगठनों के लिए आंदोलन छेड़ देना कोई नई बात नहीं । प्रायः अधिकारों की आवश्यकता महसूस करने वाले जन आधारित सामाजिक संगठन अपनी जमीनी पकड़ का एहसास कराते हुए गूंगी बहरी सरकारों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आन्दोलनों का सहारा लेते हैं । लेकिन आश्चर्य और खेद का विषय है कि सम्पूर्ण उत्तर भारत का मछुआरा समाज अपने अधिकारों के लिए आंदोलित हैं और सरकारें उपेक्षा और तिरस्कार की हद किये डाल रही हैं। संविधान लागू हुए बेशक 65 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी लोग अपने मौलिक अधिकारों की सतत मांग कर रहे हैं और सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय का ढोल पीटने वाली निष्ठुर सरकारें मांगों पर विचार तक नहीं कर रहीं ।

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

दिल्ली घेरने की आवश्यकता, कारण और महत्व


र्वप्रथम 1931 से अछूत अस्पर्श्य और निचले पायदान पर समझे जाने वाली जातियों को अनुसूचित जाति घोषित करते हुए उनके सामाजिक आर्थिक संरक्षण के सरकारी संकल्प की घोषणा की गयी । जिसे संविधान लागू होते समय प्रेसीडेंशियल ऑर्डर 1950 में इसका प्रावधान कर सरकार ने ऐसे वंचित वर्गों के लिए विशेष सुविधा अनुमन्य की और उसे अनुसूचित जाति / जनजाति आरक्षण व्यवस्था का नाम दिया गया । संविधान अनुच्छेद  341 के तहत यह सुविधा केवल दस वर्षों के लिए ही लागू की गयी और इसके निर्धारण की समस्त शक्ति संसद में निहित की गयी थी । वर्ष 1931, तदुपरांत 1950 से ही भारत के अधिकाँश राज्यों में मछुआ समुदाय की किसी न किसी जाति को इस सूची में SC अथवा ST स्टेटस युक्त स्थान देकर इन जातियों के सामाजिक उत्थान की परिकल्पना की गयी ।

किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण विषय रहा कि अनुसूचित जाति में उल्लिखित एक दो जातियों के बहुमत के कारण सरकार का यह प्रयास वोट बैंक की तुच्छ राजनीति का शिकार होकर रह गया और जातीय भाई भतीजावाद की भेंट चढ़ गया । SC आरक्षण में जातीय ठेकेदारी सर चढ़कर बोलने लगी और जातीय वोटबैंक की राजनीति से डरीं सरकारें 10 वर्षों के लिए घोषित इस पक्षपात पूर्ण व्यवस्था को अद्यतन ढो रही है ।
जाहिर है कि भाई भतीजावाद और जातीयता की भेंट चढ़ी इस आरक्षण प्रणाली से उन जातियों को कोई लाभ नहीं पहुंचा जो या तो वोट बैंक की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं थी अथवा अशिक्षित या अल्पशिक्षित थीं । दुर्भाग्य से देश की अनुसूचित जातियों की सूची में वर्णित मछुआ समुदाय की वे जातियाँ इसी संवैधानिक साजिश का शिकार बनायीं गयीं और नतीजतन उनके पर्यायवाची नामों को SC आरक्षण नहीं लेने दिया गया । 1961 में जहाँ चमार समूह की उपजातियों क्रमशः चमार, जाटव, धुसिया और झुसिया को उसके सम्मुख जोड़ा जा रहा था वहीँ अनुसूचित जाति /जनजाति सूची में वर्णित मछुआ समुदाय की जातियों की जेनेरिक कास्ट्स को बलपूर्वक पिछड़े वर्ग में ठूंसा जा रहा था, इतना ही नहीं भोले भाले मछुआ समुदाय के लोगों को SC / ST में आरक्षित होते हुए भी पिछड़ी जाति और विमुक्त जाति का प्रमाण पत्र लेने के लिए बाध्य किया जा रहा था । मछुआ जातियों का यह दुर्भाग्यनिर्धारण स्वयं को निचले तबके का मसीहा घोषित करने वाली कांग्रेस ने किया क्यूंकि कांग्रेस ने वंचित वर्गों के उत्थान का जिम्मा उनकी आरक्षण प्रणाली के भरोसे छोड़ अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली और जबकि असल में वहां साजिशन ठेकेदार और आरक्षण की लुटेरी प्रवृत्ति की जातियों का दबदबा हो गया
1989 में सामाजिक न्याय की अवधारणा समझते ही जब उत्तर प्रदेश के सत्ता से वंचित अतिपिछड़ों ने सत्ता परिवर्तनकर प्रदेश में सत्ता का पहली बार स्वाद चखा तो अहसास होते देर न लगी कि वास्तव में वंचित को वंचित बनाये रखने में कौन जिम्मेवार हैं ।
SC आरक्षण केंद्र सरकार की विषय वस्तु है । संविधान अनच्छेद 341 के प्रावधानों के अंतर्गत अनुसूचित जातियों की सूची सर्वप्रथम राष्ट्रपति आदेश 1950 द्वारा अधिसूचित की गयी थी जिसमे कोई भी संवर्धन, विलोपन या संशोधन संसद के अधिनियम द्वारा ही किया जा सकता है । अनुसूचित जातियों की सूची  में संशोधन के लिए भारत सरकार द्वारा कुछ प्रक्रियाएं निर्धारित की गयीं है जिसके अनुसार किसी जाति आदि को अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने के लिए सर्वप्रथम राज्य सरकार / संघ शासित क्षेत्र से आवश्यक नृजातीय सामग्री सहित प्रस्तावित होना अनिवार्य है जिसे भारत के महारजिस्ट्रार एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के परामर्श से प्रसंस्कृत किया जाता है । किन्तु उप्र की समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा संदर्भित जातियों के विषय में अनुसूचित जाति संशोधन प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुरूप होने के बावजूद भी हर बार टाल दिया जाता है। दुर्भाग्य से ऐसा लगातार 5 बार से हो रहा है जो निश्चित ही इन जातियों के साथ साजिश , धोखा और षड्यंत्र है । 
गृह मंत्रालय ने 5/10 1979 से 23 /5 1981 के बीच में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद भैयाराम मुंडा बनाम अनिरुद्ध पटार (ए०आई०आर० 1971 एससी 2533 )  के आलोक में आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक एवं ओडिशा के संबन्ध में कुछ जातियों को सूचीबद्ध जाति के नाम से निर्गत करने के कार्यकारी आदेश जारी किये थे, किन्तु इसमें भी साजिशकर्ता दबंग और ठेकेदार जातियों की दूषित मनोवृत्ति के कारण उत्तरप्रदेश की जातियों गोंड, तुरैहा, खरबार, मझवार और बेलदार के पर्यायवाची /जेनेरिक नामों को जोड़ने से छल/बलपूर्वक छोड़ दिया गया था । बाद में माननीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद के वाद के बाद निर्णय विधि को चतुराई और भाईभतीजावाद के कारण बदल दिया गया ।
अब माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की आड़ में स्पष्ट कर दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 341 (1) के प्रावधानों के तहत जारी राष्ट्रपति आदेशों में संशोधन का अधिकार किसी न्यायालय, ट्रिब्यूनल या राज्य सरकार को नहीं है और माननीय उच्चतम न्यायायालय ने पूर्व निर्णीत भैयाराम मुंडा बनाम अनिरुद्ध पटार (ए०आई०आर० 1971 एससी 2533 ) में दिए अपने निर्णय को उलटते हुए संशोधन का अधिकार संसद में अंतिम रूप से निहित कर दिया ।
ऐसी विषम और चातुर्यपूर्ण परिस्थितियाँ पैदा की गयीं कि
1-कोई अन्य जाति बिना केंद्र की मर्जी के अनुसूचित जाति कोटे में घुस नहीं सकती, ……इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
2-भाजपा ने अपने यूपी विधानसभा चुनाव घोषणापत्र 2012  में समाज से वायदा किया कि मछुआ समुदाय की जातियों को SC घोषित करवाया जायेगा और उस वादे की आड़ में 47 विधायक जिता लिये गए और केंद्र में बैठकर आज भाजपा इन जातियों के औचित्य पर RGI से प्रश्नचिन्ह लगवाती है.…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
3- नौ लोकसभा और दो राज्यसभा अर्थात कुल 11 भाजपा मछुआ सांसद समाज की दशकों पुरानी मांग से मुंह मोडे बैठे है …… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
4- लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने वाराणसी में गंगा और गंगापुत्रों की दुर्दशा पर लम्बे लम्बे व्याख्यान दिए थे आज उन व्याख्यानों पर समाज स्पष्टीकरण चाहता है …… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
5- पूरे भारत का मछुआ समुदाय, चाहे वह महाराष्ट्र गुजरात का कोली हो, बंगाल का केउट, झालो मालो हो, या ओडिशा का ढेबर, धीबरा, कैबर्ता हो, आंध्रप्रदेश का गंगापुत्र हो या  मप्र, छत्तीसगढ़ का मांझी, केवट, ढीमर, मुड़ियारी, तुराहा, नावड़ा, जलारी अथवा सोंधिया हो, दिल्ली राज्य का मल्लाह हो अथवा यूपी उत्तराखंड का गोंड, तुरैहा, खरबार, मझवार, बेलदार, निषाद, केवट, मल्लाह, गौड़, गोंडिया,, रैकवार, बाथम, मांझी, कश्यप, कहार, धुरिया, गुड़िया या बिंद हो, आज आरक्षण की घोर विसंगति से वर्षों से जूझ रहा है… …इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
6- केंद्र को बताना होगा कि पैसठ वर्ष के आरक्षण में हमारे हिस्से क्या आया ? ..…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
7 -सारी बंदिशे, नियम, क़ानून, अनुच्छेद और अधिनयम मछुआरों को SC आरक्षण से वंचित करने की साजिश का हिस्सा हैं .…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
8-आज राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और RGI जातीय गुंडागर्दी के अड्डे बने हुए हैं और हमारे विरुद्ध वर्षों से षड्यंत्र स्थल बने हुए हैं .…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
9-मछुआ SC आरक्षण मुद्दों पर 100 से अधिक सांसद संसद भवन में बहस कर हमारे आरक्षण की मजबूत वकालत कर चुके हैं जिनपर आज तक केंद्र की किसी सरकार ने कोई कार्रवाही नहीं की …… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
10- हम केंद्र मैं बैठी सरकार को दिखा देना चाहते हैं कि हम 1950 से SC आरक्षित होते हुए भी आज तक वंचित हैं .…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
11 - हम भारत के आदिनिवासी निषाद है जो मत्स्यपालन, आखेट और शिकार में संलग्न रहे और  धन ,धरती, वन, जल सम्पदा और सत्ता से वंचित कर दिए गए ..…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
12- हम बता देना चाहते हैं कि हम किरायेदार नहीं मकानमालिक हैं .…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
13- SC आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हमारी नस्लों को इससे षड्यंत्र पूर्वक 65 वर्षों से वंचित किया जा रहा है .…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
14 - आजादी के पूर्व के और बाद के सभी ऐतिहासिक और शासकीय दस्तावेजों में हम अछूत, अधम, जीवहत्यारे और पापकर्मा प्रमाणित हैं फिर भी हमारे हिस्से के हक़ पर ठेकेदार जातियाँ कुंडली मारे बैठी हैं और यह सब केंद्र की वोट बैंक की राजनीति के कारण हो रहा है ..…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
15- हम चेताना चाहते है कि हमारी उपेक्षा राजनैतिक दलों को भारी पड़ेगी ....…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
16- हम दिखाना चाहते हैं कि हमारी शक्ति किसी से कम नहीं है ....…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
17 - हम शासन प्रशासन और राजनैतिक भागेदारी के असली उत्तराधिकारी हैं ....…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
18- हम साबित कर देंगे कि सरकारें हमारे वोट से बनती और बिगड़ती हैं …… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
19- हम अपनी जनशक्ति से लोकतंत्र के मंदिर में आहुति देने आएंगे …… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
20- ताकि केंद्र की गूंगी,बहरी और निषादविरोधी सरकार को राम का वायदा और उतराई वसूली याद रहे ....…… इसलिए हम दिल्ली घेरना चाहते हैं।
दिल्ली चलो का नारा देकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के पैर उखाड़कर भारतीय स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त किया था, आज निषादों ने दिल्ली चलो का नारा देकर अपने आरक्षण की विसंगतियों को दूर करने का मार्ग प्रशस्त किया है । विजय निश्चित हमारी ही होगी ।
दिल्ली चलो!  संसद घेरो !