गुरुवार, 11 अगस्त 2011

वक़्त आ गया है कि आरक्षण की समीक्षा हो !!!

               अब वक़्त आ गया है कि ये भी तय हो जाये कि आरक्षण में किस जाति को कितना आनुपातिक लाभ हुआ ? किस जाति का 62 वर्षों में सरकारी नौकरियों में क्या % रहा ? किस किस जाति के कितने नुमाइंदे देश व प्रदेश की सर्वोच्च पंचायतों में बाकायदा चुने गए हैं ?   यूपी में एक ही जाति के 100 से अधिक IAS हैं जो खुल कर BSP के लिए कार्य करते हैं | इसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए | यूपी की SC सूची की 66 जातियों में से 2 -4 को छोड़ कर किसी को लाभ लेने नहीं दिया जा रहा | इसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए | इससे पहले कि आरक्षण किसी जाति विशेष की जागीर, बपौती या पुश्तैनी संपत्ति बन जाये , बेहतर है कि इसमें व्याप्त विसंगतियों की समीक्षा कर ली जाये |
              दलितों में ही राजा और रंक का भेद अभी से दिखने लगा है | दलितों की विकसित व लाभान्वित जातियां आरक्षण पर कुंडली मार कर बैठ गयी हैं जो शेष वंचित एवं उपेक्षित दलितों के लिए न केवल घोर चिंता का विषय है बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अवसर की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है | आरक्षित होते हुए भी वंचित और उपेक्षित दलितों का क़द किसी भी आईने में नजर नहीं आता | इस प्रकार विभेद पूर्ण एवं पक्षपाती आरक्षण नियमावली ने उन कम आबादी वाले दलितों को कहीं का नहीं छोड़ा है जो वास्तव में इसके पात्र है | 
                कहीं आरक्षण ही दलितों में पारस्परिक असंतुलन पैदा न कर डाले | वास्तविकता यही है क्योकि एक जातिवादी मानसिकता रखकर बसपा सरकार दलितों में ही विभाजन की प्रष्ठ भूमि तैयार किये जा रही हैं | दलितों में ही एक तबका बना जा रहा है जो सत्ता के बावजूद कमज़ोर है, योजनाओं के बावजूद पीड़ित है, आरक्षण के बावजूद वंचित है, सामाजिक न्याय के बावजूद शोषित है और दलितों की ही सरकार में बहिष्कृत है | हालात न सुधरे तो एक न एक दिन ये सर्वहारा और वंचित वर्ग अपने अधिकारों के लिए दलितों के ही मुकाबले आ जायेगा और अपने अलग हिस्से की मांग करेगा | बेहतर होगा कि सरकारें समय रहते शेष दलितों के दिलों में धधक रहे इस ज्वालामुखी की तपिश को शिद्दत से महसूस करें |
               यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि देश व प्रदेश की  सरकारें अनुसूचितजाति / जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से व अनुसूचित जाति आयोग  समय समय पर अनुसूचित जातियों के विकास हेतु उनके  उत्पीडन , शोषण उनके प्रति बरते जाने वाले सवर्णों का व्यवहार ,उनकी निर्योग्यता छुआछूत आदि विषयों पर शोध कराती हैं| सबसे ज्यादा हैरत अंगेज़ , कड़वा और भोंचक्का कर देने वाला तथ्य ये है कि इनमे उन जातियों का सर्वे किया जाता है जो वंचित, उपेक्षित , उत्पीडित, वहिष्कृत और नारकीय एवं अशिक्षित जीवन जी रही होती हैं और उनके लोग सड़कों पर रह रहे होते हैं | उनके अध्ययन और उनकी सकारात्मक रिपोर्ट पर दलितों की वो जातियां आगे बढ़ कर फायदा लेती हैं जो अपने आप को Rulling  caste  of  India तक कहने  लगी हैं | यानि शोध किसी और पर - मौज किसी और की  | रोग किसी को- इलाज़ किसी को | हक किसी का - खाए कोई और | ये तो साजिश है भाई |
                मजे की बात ये है कि वंचित और उपेक्षित दलितों के विषय पर चर्चा करने पर सबसे ज्यादा मिर्ची इन्ही  Rulling caste of  India  वालों को लगती है और इनकी भाषा वंचित एवं उपेक्षित दलितों के प्रति वही हो जाती है जो आरक्षण फिल्म में आरक्षण के प्रति प्रकाश झा की है यानि शिक्षा गान और मेरिट राग | बेहतर होगा कि दलितों की लाभान्वित जातियां आरक्षण के मूल मर्म को समझते हुए इसमें व्याप्त विसंगतियों को समय रहते स्वयं पहल कर दूर कर लें और दलित भाईचारे को बढायें |
वर्ना हालात तब और भी ज्यादा दुखदाई हो जायेंगे, जब आरक्षण के पैरोकार ही इसके आलोचक बन जायेंगे|

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