अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़े वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के हो हल्ले में शायद ही किसी को उत्तर प्रदेश की विमुक्त जातियों एवं घूमंतू जातियों की सुध रही हो | नई पीढ़ी को तो शायद समझने में समय भी लगे कि ये क्या बला है ?
जैसा कि भारत की जन गणना 1961 उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में , में स्पष्ट उल्लिखित है कि-
उत्तर प्रदेश की बंजारा ,भर , दलेरे, कहार, केवट , मल्लाह, लोध, मेवाती, औधिया और तगाभाट जातियां अपने नाम के सामने वर्णित जनपदों में विमुक्त जाति( एक ही स्थान पर निवास करने वाली ) घोषित हैं|
इसी प्रकार खुरपलटा, मोंगिया (मोंग), मदारी, सिंगीवाला, औघड़, बैस, भाट, चमरमंगता, जोगी, जोगा, किगिरिया, महावत (लुंगी पठान), भडरी, सपेरा (सपेरिया), कर मंगिया हिन्दू (महावत) और बेलदार जातियां अपने नाम के सामने वर्णित जनपदों में घूमंतू जाति घोषित हैं| ये शासनादेश सं- ए / 700(5)-1959, दिनांक 12 मई 1961 तद संशोधन शासनादेश सं- 1276/ 26-3-92-3(42)-90, दिनांक 28 नवम्बर 1992, के अनुसार घोषित हैं | विसंगति ये है कि उत्तर प्रदेश में इनमे से कुछ को विमुक्त एवं घूमन्तु घोषित होने के बावजूद जबरदस्ती पिछड़े वर्ग का जाति प्रमाण पत्र पकड़ा दिया जाता है | जब कि नियमानुसार सम्बंधित जनपदों में विमुक्त एवं घूमंतू जाति का प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना चाहिए | शेष जातियों का आज तक पता ही नहीं चल सका कि वो गयीं कहाँ ? न GEN/SC/ST/OBC की सूची में ही रहीं | ऐसा यदि जानबूझ कर किया जा रहा है तो स्पष्ट होना चाहिए कि किन लोगों को फायदा पहुँचाने की नीयत से वास्तव में ऐसा अन्याय किया जा रहा है ?
ये अन्याय उच्च न्यायालय के आदेश की उस भावना के सर्वथा प्रतिकूल है जिसमे स्पष्ट किया गया है कि विमुक्त जातियां अनुसूचित जनजातियों में समझी जाएँगी | AIR 1983 P&H 230(232)
मेरे कई मित्र दलेरे हैं उन्हें पहली बात तो दलेरे का जाति प्रमाण पत्र नही दिया जाता, दिया जाता है तो मल्लाह से जो पिछड़े बर्ग में आते हैं।शिक्षा बिहीन ओर असंगठित हैं एकीकरण का प्रयास कर हक दिलाने की सोची पर असफलता हाथ लगी।
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