रविवार, 9 जून 2013

आलोचनाओं का सहर्ष स्वागत है ।


ठेठ गंवई प्रष्ठभूमि में अपने संघर्षों को मांझते हुए ..... बीहड़ मंजरी यमुना का पानी पी पीकर .... झंझरीपुरवा के विषम जातीय झंझावातों को झेलते हुए मैंने सामाजिक विषमताओं की बेड़ियों को तोड़कर जातीय स्वाभिमान के लिए स्वर्गीय कांसीराम से प्रेरित होकर राजनीति के अंधड़ में कदम रखा । मुझे ऊँगली पकड़ कर राजनीति में लाने वाले कांसीराम जी वास्तव में एक मिशन थे ....आन्दोलन थे ...सामाजिक परिवर्तन के युग द्रष्टा थे ..मजबूत आधार थे । उनके ककहरे सीखकर सत्ता से वंचित पिचासी को जगाने के लिए बुंदेलों के बीच अपने संकल्पों को जीवंत करते हुए मैंने मात्र 28 वर्ष की अवस्था में विधान सभा का दरवाजा खटखटा दिया ।
विधायक बनकर अहसास हुआ ...जिस समाज में परिवर्तन का संकल्प लिया है उसका जीवन कितना दुरूह है दुश्वार है ..संघर्षशील है और वास्तव में अगर कोई समाज छला गया है तो सदियों से निषाद ही है ...हमारी भरोसा करने की आदत ही हमें कमजोर करती आई है । हमने भरोसे किये इसलिए अनवरत धोखे खाए ...किन्तु हमने अतीत से सबक लेने के बजाय उसे भूलना ही बेहतर समझा । आज यही हमारी सबसे बड़ी सजा है ...छल ,छद्म और पाखण्ड से जूझना ही जैसे हमारी नियति होकर रह गयी है । 
मैं 1993 में दूसरी बार विधायक और सपा बसपा सरकार में पहली बार मंत्री बना । कांसीराम जी जी हमारे आदर्श थे उन्होंने अति पिछड़ों को कभी मयस्सर न हो सकने वाली सत्ता की चाबी का रहस्य और रास्ता हमें दिखाया था , हम उन्हें देश की सर्वोच्च सत्ता सौपना चाहते थे और डॉ अम्बेडकर के बहु प्रतीक्षित मिशन को अंजाम तक पहुँचाने के लिए कमर कसे निरंतर बुन्देली धरती मथ रहे थे । 1995 में  सपा बसपा गठबंधन टूट गया .....नेताजी ने इस्तीफ़ा दिया और मायावती मुख्यमंत्री बनी । कांसीराम जी कृपा से दूसरी बार फिर मंत्री बनने का मुझे सुअवसर मिला । 15 सितम्बर 1995 को बांदा के मैदान में विशाल निषाद महारैली में निषादों के लिए हमने SC आरक्षण माँगा । मायावती ने हमारी मांग को हलके में लिया । अब मायावती के नेत्रत्व में बसपा बदलने लगी ....कांसी राम जी जैसे खामोश बुत होते गए ...मायावती ने मनुवादी ताकतों की गोद में बैठ कर सत्ता का सौदा किया और कांसीराम की तपस्या पर पानी फेरना शुरू किया । हमने विरोध किया । इस बीच हम 1996 सांसद चुन लिए गए और मछुआ समुदाय के SC आरक्षण से सम्बंधित सवालों पर संसद में सवालों की झड़ी लगा दी । मायावती फिर मुख्यमंत्री बनी । बसपा पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से मायावती ने कांसीराम समर्थकों को चुन चुनकर बसपा से बाहर खदेड़ना शुरू किया । मायावती को सरकार में निषाद SC आरक्षण के वायदे की हमने याद दिलाई ...जिसका नतीजा हमें बसपा से निष्काशन के रूप में झेलना पड़ा । ये वो समय था जब निषादों के सहयोग से बसपा बुदेलों की धरती पर मजबूती से पैर गड़ा चुकी थी । समाज के आरक्षण की कीमत ..मेरा बसपा पार्टी से निष्काशन था । लेकिन झंझरी पुरवा के झंझावातों ने प्रेरणा दी और मैंने हार नहीं मानने का फैसला किया ।
मुलायम सिंह जी बेशक तब हमारे नेता नहीं थे लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने हमारे संघर्षों को नजदीक से जाना और हमारे लोगों की आशाओं और अपेक्षाओं को सम्मान देते हुए अपनी पार्टी में समाजवादी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया । इतिहास गवाह है .......मैंने निषाद SC आरक्षण के अतिरिक्त नेताजी से कुछ नहीं माँगा ...न मांगूंगा । नेताजी ने हमसे यही कहा था कि जिस दिन समाजवादी पार्टी सत्ता में आएगी इस मांग पर काम होगा और आप के इस वादे को हम पूरा करने की दिशा में ठोस एवं सार्थक पहल करेंगे ।मुझे ख़ुशी हैं आदरणीय मुलायम सिंह जी ने आज तक मुझे लज्जित होने का मौका नहीं दिया । सपा आज भी इस मुद्दे पर गंभीर संघर्ष कर रही है
पिछली सपा सरकार में इसी मुद्दे पर कार्य करते हुए हमने शोध संसथान से सर्वे कराया और केंद्र को प्रस्ताव भेजा। केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार ने गाहे बगाहे हर दफा इसमें कमियां निकाल कर वापस किया । चार बार वापस भेजने के उपरान्त अंतिम बार जब प्रस्ताव केंद्र गया तो बसपा के बड़े नेता RGI of INDIA से गाली गलौज कर आये । हमारा और सम्पूर्ण समाज का दुर्भाग्य रहा कि समाजवादी पार्टी चुनाव हार गयी और नेताजी सत्ता से बाहर हो गए ।
जवाब में बनी मायावती की बसपा ने 20 दिन के भीतर उक्त प्रस्ताव को मूल रूप में मंगा कर नष्ट कर दिया । हमने सड़कों पर आंदोलन छेड़ दिया ...बाँदा, आजमगढ़ ,वाराणसी,बलिया ,आंवला , और लखनऊ के विशाल  मंडलीय सम्मेलनों से बसपा दवाब में आ गयी और 4 मार्च 2009 को मायावती ने प्रधान मंत्री को दो पेज की एक चिठ्ठी हमारे समर्थन में भेज दी लेकिन प्रस्ताव दवाए रही ।
समाज अनपढ़ जरूर था और साथ ही राजनैतिक अनुभव हीन भी ... लेकिन  मायावती के छल को जान गया । \मैंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से समाज की यह बहुप्रतीक्षित मांग सपा के विधानसभा घोषणा पत्र  2012 में रखवाई । नेता जी इस मुद्दे को लेकर समाज के बीच गए और समाज का घनघोर समर्थन मिला ।
दुर्भाग्य से मैं विधान सभा चुनाव हार गया लेकिन नेताजी के प्रति अपना अटूट विश्वास जिता कर ले गया।
पिछले अनुभवों को देखते हुए देर से ही सही ....लेकिन इस मुद्दे पर बाकायदा कमेटियां बनाकर पक्का काम किया गया ताकि कोर्ट कचहरी ..शकोशुबा की कोई गुंजाइश न रहे । आखिरकार सामूहिक प्रयासों से 16 फरवरी 2013 को यह अनंतिम रूप से तदुपरांत विधान सभा से पास कराकर अंतिम रूप से केद्र को भेज दिया गया ।
लोग  कहते है सपा के सहयोग से केंद्र की सरकार चल रही है ......ऐसा वही लोग कहते है जो राजनीति को टीवी पर देखते हैं ,अखबारों में पढते हैं या लोगों से सुनते है । जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है ....केंद्र की सरकार को बसपा का भी पूर्ण समर्थन है और अगर सपा केंद्र सरकार से समर्थन वापस भी लेले तो भी केंद्र सरकार नहीं गिरने वाली । उसे बसपा बचाकर ले जायेगी । ये नंबरों का खेल है जिसमे कुछ नंबरों से हमारी पार्टी चूक गयी , अगर हमारे दस सांसद और होते देश की दिशा और दशा कुछ और ही होती । एक दूसरा सवाल ये भी है सिर्फ निषाद आरक्षण मुद्दे पर सपा केंद्र से समर्थन क्यों वापस ले ......जबकि और दुसरे मुद्दे भी है जिनपर काम होना है ।  सब जानते है प्रदेश सरकार को चलाने के लिए और किये गए वादों को पूरा करने के लिए केंद्र से धन की आवश्यक्ता होती है और सबसे बड़ी बात ये है कि  इस मुद्दे पर संसद में कांग्रेस पर ...या कम से कम सपा पर दवाब डालने के लिए पर्याप्त निषाद सांसद नहीं है । जब बात प्रमोशन में आरक्षण की होती है तो अनुसूचित जाति के सारे सांसद पार्टी मर्यादा भूल कर एक हो जाते हैं ....लेकिन मुठ्ठी भर ही सही .... मछुआ सांसद अपने मुद्दों पर एक जुट होने में कतराते हैं और तौहीन समझते हैं ।
संसद का मानसून सत्र आने वाला है । समाजवादी पार्टी अपने वादे के अनुरूप कांग्रेस पर इस प्रस्ताव को मंजूर करने के लिए दवाब बनाएगी ..हंडिया उपचुनाव का अनुभव भी कांग्रेस के सामने रहेगा और आशा है कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में जाने से पूर्व पहली बार ही सही ...मछुआ समुदाय के हित में व्यापक निर्णय लेगी और मछुआ जातियों को उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति से अनुसूचित जाति में लाने हेतु आवश्यक संविधान संशोधन करेगी ।
जय भारत ! जय निषाद !! जय समाजवाद !!!

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