बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

** अपने आप को पहचानों **

अपने इतिहास को कभी मत भूलो|
तुम हमेशा याद रखो कि ,
तुम भारत की प्राचीनतम और गौरवशाली जल संस्कृति के ध्वज वाहक हो|
तुम भारत की श्रेष्ठतम निषाद परंपरा के संवाहक हो |
तुम सबसे अलग हो, निर्विवाद हो |
तुम भारत के मूलवासी निषाद हो |
तुम ही साक्षात् बल वंशी हो |
तुम  निसंदेह जल वंशी हो |
तुम्हारे मष्तिष्क में वेदव्यास जी का ज्ञान है |
तुम्हारे चेहरे पर निषाद राज गुह का स्वाभिमान है |
तुम्हारी आँखों में वीर एकलव्य का आक्रोश है |
तुम्हारी वाणी में राजा नल का जोश है |
तुम्हारी धमनियों में जरासंध का खौलता रक्त  है |
तुम्हारी हड्डियों में राजा वेन सशक्त है |
तुम्हारे पास भगवान कालूदेव का आधार है |
तुम्हारे सीने में चन्द्रवट की हुंकार है |
तुम्हारी भुजाओं में भाई हिम्मत सिंह जी की शक्ति है |
तुम्हारी सरलता में माता शबरी की भक्ति है |
तुम्हारे पास कौरवाकि का श्रृंगार है |
तुम्हारे पास सत्यवती का संसार है |
तुम्हारे पास रानी दुर्गावती का पराक्रम है |
तुम्हारे पास तिलका मांझी का दमखम है |
तुम्हारे पास जुब्बा साहनी का त्याग है |
तुम्हारे पास लोचन मल्लाह की आग है |
तुम्हारे पास विपत केवट की ललकार है | 
तुम्हारे पास सिद्धो - समधन की धार है |
तुम्हारे पास दशरथ मांझी  की आन है | 
तुम्हारे पास वीरांगना फूलन देवी का बलिदान है |
तुम्हारा इतिहास साधारण या मनगढ़ंत नहीं ,
तुम्हारा इतिहास प्रामाणिक है ,अमर है और महान है |

तुम्हारी नौकाओं ने सात समुन्दर तक नाप डाले |
तुम्हारे हाथों ने पाताल तक कुंएं खोद डाले |
तुमने मत्स्य कन्याओं का रूप देखा है |
तुमने सागर में जाल फेंका है |
ताल पोखर तो सब तुम्हारे  थे |
जिसमे सिंघाड़ा तुम उगाते थे |
शिकार करते थे रोज़ मछली का |
घर पे लगता था ढेर नकदी का |
खनन पे हक तुम्हारा मालिकाना था |
हर नदी घाट पे ठिकाना था |
तुमने उठाईं हैं डोलियाँ भी |
तुमने खेतों में मजदूरियाँ की |
तुमने अर्पण किये हैं तन मन भी |
तुमने धोये हैं झूठे बर्तन भी |
तुमने अच्छे अच्छों को पानी पिलाया |
तुम्हारे सामने कोई टिक नहीं पाया |
तुमने सेवा की, इसलिए गुनहगार बने |
अन्याय का हर तरह शिकार बने |
तुमने मेहनत से मुंह नहीं मोड़ा |
पर कभी देश को नहीं तोडा |
तुमने लोहा लिया फिरंगी से |
सर झुकाया नहीं बेशर्मी से |
तुम भी आज़ादी के सिपाही थे |
तीर क्या तोप से न डरते थे |
तुमने भालों पे टेक दीं गर्दन |
हकपरस्ती की बात की हरदम |
मौत से तुम कभी न घबराए |
तुम निशाने पे इसलिए आये | 
ज़ुल्म अँगरेज़ ने ये बरपाया |
तुमको अपराधी जाति ठहराया |
तुमको शहरों से दूर बसवाया |
और हिस्से में कुछ नहीं आया |
तुम रहे जंगलों में छिप करके |
रौशनी इल्म की न देख सके |
हक से जो दूर थे ,वो तुम ही थे |
कल जो मशहूर थे वो तुम ही थे |
तुमको अब भी ज़रा सा होश नहीं |
घर में बैठे हो कोई जोश नहीं |
तुमको मालूम कोई राह नहीं |
तुमको आरक्षण की भी चाह नहीं |
तुम अपना दर्द भला कब तलक छुपाओगे |
एक हो जाओ तो इस दौर में छा जाओगे |

आभार :- अरुण कुमार तुरैहा 

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

!! मत भूलो अपना इतिहास !!

हमें अपना इतिहास कभी नहीं भूलना चाहिए |
जो कौमें अपना इतिहास भूला देती हैं वो विकास की दौड़ में औरों से कोसों पीछे छूट जाती हैं और जल्द ही ख़त्म हो जाती हैं | क्योंकि हमारा गुज़रा कल हमेशा हमें अपने पूर्वजों द्वारा किये गए संघर्षों की याद दिलाता है | इसलिए हमें अपने इतिहास को संजो कर रखना चाहिए | इतिहास से हमें प्रेरणा मिलती है | प्रेरणा से जागरूकता बढती है | जागरूकता से संगठन बनता है | संगठन से शक्ति प्राप्त होती है | शक्ति से सत्ता हासिल होती है और सत्ता से साधन / संसाधन मिलते हैं जिसके माध्यम से समाज के विकास के नए मार्ग प्रशस्त होते हैं |
इसलिए अपने इतिहास को कभी मत भूलो
We should never forget our History. Those people who have forgetten their glorious past , has been ruined themselves and they have lagged behind in the race of Devolepment because our past tell us the story of our hard struggle that has been done by our ancestors. So we should always remember our History . Because it gives us inspiration. Inspired people r always awakend. awakeness ties up us in unity. United people get power. Power generate a system and system provide us medium / resouces to implement and open the new path of Social devolepment.
So Never forget your origin.

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

माया का 700 करोड़ का पार्क : रुपयों की महाबर्बादी

शाह खर्ची का नायाब  नमूना है ये पार्क | जिस देश के आम आदमी की दिहाड़ी (दैनिक आय ) बीस रूपये हो | वहां रुपया पार्कों पर नहीं बल्कि जनता के विकास पर खर्च होना चाहिए | जनता की त्राहि त्राहि के बीच ऐसे लग्ज़ीरियस पार्कों का निर्माण जले पर नमक छिड़कने जैसा है |
1- 700 करोड़ से साढ़े तीन लाख गरीब लड़कियों की शादी हो सकती थी |
2- इस रकम से दो करोड़ चौंतीस  लाख बच्चों को एक साल तक छात्रवृत्ति दी जा सकती थी |
3- इस रकम से चालीस लाख परिवारों को एक वर्ष तक पेंशन दी जा सकती थी |
4- इस रकम से सात लाख परिवारों के कमाऊ सदस्य के मर जाने पर आर्थिक सहायता दी जा सकती थी |
5- इस रकम से बारह लाख गरीब परिवारों को एक साल तक मुफ्त अनाज दिया  जा सकता था | 
6- इस रकम से दो लाख गरीब आवासहीन परिवारों को मुफ्त मकान दिया जा सकता था |
7- इस रकम से प्रदेश के डेढ़ लाख किसानों का पचास हजार तक का ऋण माफ़ किया जा सकता था |
8- इस रकम से सहारनपुर से लखनऊ होते हुए गोरखपुर तक सड़क बनाई जा सकती थी |
9- इस रकम से प्रदेश में दस बड़ी फैक्ट्री खोली जा सकती थी |
10- इस रकम से प्रदेश के पाँच हज़ार बीमार उद्योगों को सहायता देकर चलाया जा सकता था |
11- इस रकम से प्रदेश के हर जिले में दो बड़े अस्पताल कुल 150  खोले जा सकते थे |
12- इस रकम से प्रदेश में 50  इंजीनियरिग कालेज खोले जा सकते थे |
13- इस रकम से प्रदेश में 50  मेडिकल  कालेज खोले जा सकते थे
14- इस रकम से 1000 आई टी आई खोले जा सकते थे |
15- इस रकम से प्रदेश में दो लाख नल लगाये जा सकते थे |
16- इस रकम से प्रदेश में बीस हज़ार किमी नहर बनाई जा सकती थी |
17- इस रकम से प्रदेश में 100  मद्दयम दर्जे के पुल बनाये जा सकते थे |
18- इस रकम से प्रदेश के 3000 गावों में विद्युतीकरण हो सकता था |
19- इस रकम से प्रदेश में 3000 नई बसें चलाई जा सकती थी |
मगर ये हो न सका |
                              मायावती ने अपनी बादशाहत का जलवा अफरोज रखने के लिए प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई फाइव स्टार पार्कों पर झोंक दी है | मगर बादशाहत के भुलावे में मायावती खुद भूल गयी है कि लोक तंत्र में जनता ही असली मालिक होती है जो मायावती की फिजूलखर्ची जल्द ही बंद करवा देगी |

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

बंद करे सरकार द्रोणाचार्य सम्मान

वीर एकलव्य का छल से अंगूठा ठगने वाले पक्षपाती गुरु द्रोणाचार्य के नाम से खेल प्रशिक्षकों को दिया जाने वाला द्रोणाचार्य सम्मान केद्र सरकार तत्काल बंद करे | निषाद जातियों को मुंह चिढाने वाला ये सम्मान जब तक जारी रहेगा तब न स्वस्थ गुरु - शिष्य परंपरा रहेगी न गुरुओं के लिए मान सम्मान का भाव | द्रोणाचार्य ने सत्ता के नजदीक रहने की लालसा में एकलव्य को सिर्फ इसलिए विकलांग बना डाला था क्योकि वह शूद्र वर्ण में जन्मा व्यक्ति था और उसे शस्त्र कला में प्रवीणता तो दूर शस्त्र छूने तक की मनाही थी | अपने सीमित साधन और त्याग के बदौलत एकलव्य ने खुद को स्थापित तो किया लेकिन गुरु के मायाजाल में फंस कर रह गया | कहना न होगा कि विश्व के इतिहास में ऐसा कलंकित गुरु शायद ही पैदा हो | वास्तव में ऐसे नामों पर दिए जाने वाले सम्मान से हम अपने इतिहास को झुठला रहे हैं | आगे आने वाली पीढ़ी खुद हमसे सवाल करेगी कि निषाद वंशियों को अपमानित और बहिष्कृत करने वाले ऐसे घोर दुष्ट गुरु के नाम पर पुरूस्कार क्यों ?
खेल मंत्रालय को चाहिए कि वह कपटी द्रोणाचार्य के स्थान पर किसी अन्य महापुरुष के नाम पर खेल प्रशिक्षकों को यह सम्मान दे | इतिहास में तमाम निष्ठावान, कर्मठ और समदर्शी गुरुओं का उल्लेख है |

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

आज का एकलव्य

आज का एकलव्य ,
द्रोणाचार्य के लाख मांगने पर भी,
नहीं देगा अपना अंगूठा |
बल्कि ,
दिखा कर ठेंगा ,
मुंह चिडायेगा ,
उस द्रोणाचारी व्यवस्था का,
जिसने निषादों की प्रतिभाओं को,
पीछे धकेलने का ठेका लिया था शासन से |
आज का एकलव्य ,
सोचेगा नहीं एक पल भी ,
चला देगा तीर फ़ौरन ,
उस अर्जुन पर ,
जिसके जातीय दंभ और अज्ञान के समक्ष,
बौना ठहरा दिया गया था ,
एकलव्य का धनुर्कौशल्य |
आज का एकलव्य ,
खींच लेगा ज़ुबान,द्रोणाचार्य की,
अंगूठा ठगने की हिमाक़त पर ,
ताकि दोबारा न पड़े हिम्मत ,
किसी और को एकलव्य बनाने की ।

आभार -श्री अरुण कुमार तुरैहा (रामपुर )