अपने इतिहास को कभी मत भूलो|
तुम हमेशा याद रखो कि ,
तुम भारत की प्राचीनतम और गौरवशाली जल संस्कृति के ध्वज वाहक हो|
तुम भारत की श्रेष्ठतम निषाद परंपरा के संवाहक हो |
तुम सबसे अलग हो, निर्विवाद हो |
तुम भारत के मूलवासी निषाद हो |
तुम ही साक्षात् बल वंशी हो |
तुम निसंदेह जल वंशी हो |
तुम्हारे मष्तिष्क में वेदव्यास जी का ज्ञान है |
तुम्हारे चेहरे पर निषाद राज गुह का स्वाभिमान है |
तुम्हारी आँखों में वीर एकलव्य का आक्रोश है |
तुम्हारी वाणी में राजा नल का जोश है |
तुम्हारी धमनियों में जरासंध का खौलता रक्त है |
तुम्हारी हड्डियों में राजा वेन सशक्त है |
तुम्हारे पास भगवान कालूदेव का आधार है |
तुम्हारे सीने में चन्द्रवट की हुंकार है |
तुम्हारी भुजाओं में भाई हिम्मत सिंह जी की शक्ति है |
तुम्हारी सरलता में माता शबरी की भक्ति है |
तुम्हारे पास कौरवाकि का श्रृंगार है |
तुम्हारे पास सत्यवती का संसार है |
तुम्हारे पास रानी दुर्गावती का पराक्रम है |
तुम्हारे पास तिलका मांझी का दमखम है |
तुम्हारे पास जुब्बा साहनी का त्याग है |
तुम्हारे पास लोचन मल्लाह की आग है |
तुम्हारे पास विपत केवट की ललकार है |
तुम्हारे पास जुब्बा साहनी का त्याग है |
तुम्हारे पास लोचन मल्लाह की आग है |
तुम्हारे पास विपत केवट की ललकार है |
तुम्हारे पास दशरथ मांझी की आन है |
तुम्हारे पास वीरांगना फूलन देवी का बलिदान है |तुम्हारा इतिहास साधारण या मनगढ़ंत नहीं ,
तुम्हारा इतिहास प्रामाणिक है ,अमर है और महान है |
तुम्हारी नौकाओं ने सात समुन्दर तक नाप डाले |
तुम्हारे हाथों ने पाताल तक कुंएं खोद डाले |
तुमने मत्स्य कन्याओं का रूप देखा है |
तुमने सागर में जाल फेंका है |
ताल पोखर तो सब तुम्हारे थे |
जिसमे सिंघाड़ा तुम उगाते थे |
शिकार करते थे रोज़ मछली का |
हर नदी घाट पे ठिकाना था |
ताल पोखर तो सब तुम्हारे थे |
जिसमे सिंघाड़ा तुम उगाते थे |
शिकार करते थे रोज़ मछली का |
घर पे लगता था ढेर नकदी का |
खनन पे हक तुम्हारा मालिकाना था |हर नदी घाट पे ठिकाना था |
तुमने उठाईं हैं डोलियाँ भी |
तुमने खेतों में मजदूरियाँ की |
तुमने अर्पण किये हैं तन मन भी |
तुमने धोये हैं झूठे बर्तन भी |
तुमने अर्पण किये हैं तन मन भी |
तुमने धोये हैं झूठे बर्तन भी |
तुमने अच्छे अच्छों को पानी पिलाया |
तुम्हारे सामने कोई टिक नहीं पाया |
तुमने सेवा की, इसलिए गुनहगार बने |
अन्याय का हर तरह शिकार बने |
तुमने मेहनत से मुंह नहीं मोड़ा |
पर कभी देश को नहीं तोडा |
तुमने मेहनत से मुंह नहीं मोड़ा |
पर कभी देश को नहीं तोडा |
तुमने लोहा लिया फिरंगी से |
सर झुकाया नहीं बेशर्मी से |
तुम भी आज़ादी के सिपाही थे |
तीर क्या तोप से न डरते थे |
तुमने भालों पे टेक दीं गर्दन |
हकपरस्ती की बात की हरदम |
मौत से तुम कभी न घबराए |
तुम निशाने पे इसलिए आये |
तुमने भालों पे टेक दीं गर्दन |
हकपरस्ती की बात की हरदम |
मौत से तुम कभी न घबराए |
तुम निशाने पे इसलिए आये |
ज़ुल्म अँगरेज़ ने ये बरपाया |
तुमको अपराधी जाति ठहराया |
तुमको शहरों से दूर बसवाया |
और हिस्से में कुछ नहीं आया |
तुम रहे जंगलों में छिप करके |
रौशनी इल्म की न देख सके |
हक से जो दूर थे ,वो तुम ही थे |
कल जो मशहूर थे वो तुम ही थे |
तुमको अब भी ज़रा सा होश नहीं |
घर में बैठे हो कोई जोश नहीं |
तुमको मालूम कोई राह नहीं |
तुमको आरक्षण की भी चाह नहीं |
तुम अपना दर्द भला कब तलक छुपाओगे |
एक हो जाओ तो इस दौर में छा जाओगे |
आभार :- अरुण कुमार तुरैहा
आभार :- अरुण कुमार तुरैहा