आदरणीय मायावती बैचैन हैं ....पेटदर्द शुरू हो गया है । .कहते हैं बरसात में उल्टा सीधा खा लो .....तो अजीर्ण होना लाजिमी हैं ..यहाँ तो पूरा समाज ही जातीय आधार पर चबा डालने की मंशा लिए बैठी बसपा प्रमुख सन्न रह गयी है । इसे करारा झटका माना जा रहा है ।
हालिया हाईकोर्ट द्वारा राजनैतिक दलों के जातीय सम्मेलनों एवं कार्यक्रमों पर संज्ञान लेकर रोक लगाना स्वागत योग्य एवं सराहनीय है । निसंदेह इसके पीछे राजनैतिक दलों द्वारा समाज को जातीय आधार पर विभाजित कर कर वोट बैंक की गन्दी राजनीति को झटका लगेगा और जातीय उन्माद की ओर बढ़ रहे समाज में खुशहाली और भाई चारा बढ़ेगा ।
सब जानते हैं कि राजनीति में बसपा के उभार से समाज में जातिवादी राजनीति और कमेटियों की बाढ़ सी आ गयी । बसपा और उसकी प्रमुख ने घटिया सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर जातियों की कमेटियां खड़ी कर दी ...जैसे में कुर्मी समाज भाईचारा कमेटी , ब्राह्मण समाज भाईचारा कमेटी ,क्षत्रिय समाज भाईचारा कमेटी,बनिया समाज भाईचारा कमेटी , पाल समाज भाईचारा कमेटी सैनी समाज भाईचारा कमेटी,गुर्जर समाज भाईचारा कमेटी ,कश्यप समाज भाईचारा कमेटी, लोहार समाज भाईचारा कमेटी ,ठठेरे समाज भाईचारा कमेटी ,जाट समाज भाईचारा कमेटी ,यादव समाज भाईचारा कमेटी वगैरह वगैरह ........।
इन कमेटियों के गठन से समाज में नफरत और वैमनस्य की खाई चौड़ी हो रही थी वहीँ ये कमेटियों बसपा के लिए अवैध धन वसूली का जरिया बनी हुयीं थी । हर छुट भैय्ये को भाईचारा कमिटी का नेता बनाकर बसपा राजनीति का अपराधीकरण करने में जुटी थी वहीँ तथाकथित भाईचारा कमिटी वाले चोरी और बलात्कार जैसे संगीन अपराधों में शामिल निकले । यानी जिस पर भाई चारा बनाने की जिम्मेवारी दी गयी वही समाज को तोड़ने में जुट गया ।
समाजवादी पार्टी डॉ लोहिया के जाति तोड़ो -समाज जोड़ो के विचार पर गठित पार्टी है और जातिवाद को देश व् समाज के लिए बुराई मानती हैं । डॉ लोहिया ने समाज को जोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह और रोटी बेटी के संबंधो पर जोर देने की वकालत करते हुए सामाजिक तानेबाने को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया और सबसे पहले पिछड़ों के "अजगर" समूह यानि अहीर ,जाट ,गुर्जर और राजपूत जातियों को गोत्र और जाति भेद मिटाते हुए एक होने का अहसास कराया । बाद में यही गठजोड़ राजनैतिक शक्ति में परिवर्तित होता गया और पिछड़े राजनीति में जड़ पकड़ते चले गए । लोध…मल्लाह सहित सैनी ,शक्य,मोर्य ,कुशवाहा, माली, फूलमाली जातियां भी गोत्र्वाद और जातिभेद का नाम भूलकर डॉ लोहिया के आह्वान पर एक हो गयी और डॉ लोहिया के अरमानों का समाजवाद परवान चढ़ने लगा ।
निसंदेह अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए समाज को गोत्र में बांटने वाली बसपा इस निर्णय से बौखलाई हुयी हैं ...क्योंकि अभी अभी वह ब्राह्मण सम्मलेन करके निबटी हैं .....फिलहाल हाईकोर्ट के निर्णय ने बसपा के समाज तोड़ो अभियान पर पलीता लगा दिया है
हालिया हाईकोर्ट द्वारा राजनैतिक दलों के जातीय सम्मेलनों एवं कार्यक्रमों पर संज्ञान लेकर रोक लगाना स्वागत योग्य एवं सराहनीय है । निसंदेह इसके पीछे राजनैतिक दलों द्वारा समाज को जातीय आधार पर विभाजित कर कर वोट बैंक की गन्दी राजनीति को झटका लगेगा और जातीय उन्माद की ओर बढ़ रहे समाज में खुशहाली और भाई चारा बढ़ेगा ।
सब जानते हैं कि राजनीति में बसपा के उभार से समाज में जातिवादी राजनीति और कमेटियों की बाढ़ सी आ गयी । बसपा और उसकी प्रमुख ने घटिया सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर जातियों की कमेटियां खड़ी कर दी ...जैसे में कुर्मी समाज भाईचारा कमेटी , ब्राह्मण समाज भाईचारा कमेटी ,क्षत्रिय समाज भाईचारा कमेटी,बनिया समाज भाईचारा कमेटी , पाल समाज भाईचारा कमेटी सैनी समाज भाईचारा कमेटी,गुर्जर समाज भाईचारा कमेटी ,कश्यप समाज भाईचारा कमेटी, लोहार समाज भाईचारा कमेटी ,ठठेरे समाज भाईचारा कमेटी ,जाट समाज भाईचारा कमेटी ,यादव समाज भाईचारा कमेटी वगैरह वगैरह ........।
इन कमेटियों के गठन से समाज में नफरत और वैमनस्य की खाई चौड़ी हो रही थी वहीँ ये कमेटियों बसपा के लिए अवैध धन वसूली का जरिया बनी हुयीं थी । हर छुट भैय्ये को भाईचारा कमिटी का नेता बनाकर बसपा राजनीति का अपराधीकरण करने में जुटी थी वहीँ तथाकथित भाईचारा कमिटी वाले चोरी और बलात्कार जैसे संगीन अपराधों में शामिल निकले । यानी जिस पर भाई चारा बनाने की जिम्मेवारी दी गयी वही समाज को तोड़ने में जुट गया ।
समाजवादी पार्टी डॉ लोहिया के जाति तोड़ो -समाज जोड़ो के विचार पर गठित पार्टी है और जातिवाद को देश व् समाज के लिए बुराई मानती हैं । डॉ लोहिया ने समाज को जोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह और रोटी बेटी के संबंधो पर जोर देने की वकालत करते हुए सामाजिक तानेबाने को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया और सबसे पहले पिछड़ों के "अजगर" समूह यानि अहीर ,जाट ,गुर्जर और राजपूत जातियों को गोत्र और जाति भेद मिटाते हुए एक होने का अहसास कराया । बाद में यही गठजोड़ राजनैतिक शक्ति में परिवर्तित होता गया और पिछड़े राजनीति में जड़ पकड़ते चले गए । लोध…मल्लाह सहित सैनी ,शक्य,मोर्य ,कुशवाहा, माली, फूलमाली जातियां भी गोत्र्वाद और जातिभेद का नाम भूलकर डॉ लोहिया के आह्वान पर एक हो गयी और डॉ लोहिया के अरमानों का समाजवाद परवान चढ़ने लगा ।
निसंदेह अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए समाज को गोत्र में बांटने वाली बसपा इस निर्णय से बौखलाई हुयी हैं ...क्योंकि अभी अभी वह ब्राह्मण सम्मलेन करके निबटी हैं .....फिलहाल हाईकोर्ट के निर्णय ने बसपा के समाज तोड़ो अभियान पर पलीता लगा दिया है
विश्वम्भर जी आपको बधाई ! इस प्रयास के लिए आप एक कार्य जागरूकता के लिए कर रहे हैं अपनी बात आप इस सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से जनजन(सुविधा संपन्न) तक पहुंचा सकते हैं इसी तरह का प्रयाश मैंने वर्षों पूर्व शुरू किया और अमर सिंह की सारी 'खूबियों'से लोगों को अवगत कराया कुछ लोगों ने सराहा भी "पर हुआ क्या" अब समाजवादी पार्टी उन उद्देश्यों को भूलकर जिसके लिए यह अस्तित्व में आई थी उससे उलटा "ब्राह्मण उत्थान में लग गयी है" देखिये मैं ज्यादा बड़ी बात तो नहीं करता कुछ निक्कम्मे पिछड़ों को तमगा लटका देने से 'समता' और समृद्धि नहीं आती, वह आती है ज्ञान और कौशल से जो निश्चित तौर पर हमारे समाज में मौजूद है पर उसका निरादर हो रहा है और ये कहकर की नौजवानों को आगे लाया जा रहा है, ये नौजवान हैं कौन, भटके हुए, सामाजिक सरोकारों से दूर और बहुत दूर .
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