ऐ ख़ाक़ नशीनों उठ बैठो !!
ऐ ख़ाक़ नशीनों उठ बैठो, वह वक्त करीब आ पहुंचा है ।
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे ।।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं ।
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे ।।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं, सर भी बहुत ।
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे ।।
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