रविवार, 29 जनवरी 2012
रविवार, 22 जनवरी 2012
फर्जी युवराज़ की कुंठा
राहुल गाँधी अपनी सभाओं में बढ़ते विरोध से कुंठित हो चला है | मैंने इसके बारे में पहले से जानता हूँ कि ये बेहद शांत और शालीनता का लबादा केवल दिखाने के लिए ओढ़ता है और वास्तव में निहायत बदतमीज़ किस्म का आदमी है | पहले यूपी की जनता को भिखारी जैसे शब्दों से नवाजने वाला फर्जी युवराज़ अब प्रदेश की जनता को गुंडा कह रहा है | भाषण का अंदाज़ ऐसा जैसे झगडे पर आमादा हो | महासचिव जैसे पद को धारण करने वाले और सांसद से ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि उसकी जुबान पर चालू शब्दाबली भी आएगी वो भी सार्वजनिक मंचों पर | गुंडा कह कर आखिर गरीब गाँव वालों और छात्रों को क्या समझाना चाहता है | रटा रटाया जोर- जोर से बोलने से या धमकी भरे अलफ़ाज़ बोल देने से तालियाँ तो मिल जाएँगी लेकिन वोट हाथ नहीं आएगा | महंगाई से जूझते लोग डायलाग सुनने थोड़े आयेंगे |
बेहतर होगा फर्जी युवराज़ अपनी चढ़ी हुयी आस्तीने नीचे कर लें क्योंकि मौसम ठण्ड का है | जबकि हमारे यहाँ गर्मी के मौसम में कुर्ते की आस्तीने मोड़ी जाती हैं | वो भी बुजुर्गों के सामने चढ़ी हुयी आस्तीने नीचे कर ली जाती हैं | इसके अलावा आस्तीने चढाने का एक ही मतलब होता है........ भिड़ना | जो कम से कम कांग्रेस के लोगों की बस की बात नहीं है |
सो राहुल प्रदेश की जनता से गुंडा कहने पर तत्काल माफ़ी मांगे और शालीनता बरतते हुए भाषा को नियंत्रित व जुबान को नरम रखे , वर्ना समाजवादियों को दौड़ाना भी आता है |
शनिवार, 21 जनवरी 2012
माया की असलियत जाहिर : RSS से सांठ गाँठ सामने आई
मायावती का इतिहास भी देखा जाये तो RSS की मदद से तीन बार मुख्यमंत्री बन चुकी मायावती ने गुजरात में मुसलमानों का क़त्ले आम मचा देने वाले नरेंद्र मोदी के पक्ष में न सिर्फ प्रचार किया बल्कि निकाय चुनाव में मेरठ में अपने ही प्रत्याशी को हरवाते हुए मुसलमानों को कट्टर जेहनियत का बता कर दलित वोटरों से भाजपा को वोट देने की अपील कर डाली थी |
बसपा के संघ से अवैध संबंधों की पुष्टि एक और तथ्य से की जा सकती है | बसपा ने सपा के प्रायः हर मुसलमान उम्मीदवार के विरुद्ध वोट कटवा मुस्लिम चेहरे उतारे हैं जिनका एक मात्र उद्देश्य मुस्लिम वोटों का विभाजन है ताकि कम से कम सपा का मुस्लिम प्रत्याशी तो हार ही जाये | मायावती के 85 मुस्लिम प्रत्याशियों में 60 से अधिक सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के विरुद्ध हैं | बाकी कमज़ोर सीटों पर केवल मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या बढाकर दिखाने के लिए जबरदस्ती टिकट देकर तान दिए गए हैं | ये RSS का छिपा एजेंडा है कि मुसलमान नेतृत्व विहीन होकर कमज़ोर पड़ जाये और मायावती लगातार RSS की इसी योजना पर काम कर रही है | दर असल नेता जी ने जब से मुस्लिमों के लिए OBC कोटे से एकदम अलग 18 % आरक्षण की मांग उठायी तब से RSS और भाजपा समाजवादियों पर अधिक हमलावर हो गए हैं |
क्या कल्पना की जा सकती है कि संघ की अपील पर भाजपा का वोट जब बसपा को पड़ेगा तो बसपा के मुसलमान प्रत्याशियों को भी इसका लाभ मिलेगा ? कदापि नहीं | इस प्रकार स्पष्ट है कि मायावती RSS के छिपे एजेंडे पर काम करके मुस्लिम प्रत्याशी नहीं बल्कि कुर्बानी के बकरे तैयार कर रही है |
देखतें हैं , लोग क्या निर्णय लेते हैं |
रात तो वक़्त की पाबन्द है ढल जाएगी |
देखना ये है, चरागों का सफ़र कितना है |
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
माया का चुनाव आयोग विरोध गलत
चुनाव आयोग के निर्णय के विपरीत जाकर मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी निष्ठां संविधान और आयोग में कदापि नहीं है | आयोग के निर्णय की मुखालेफत एक गलत शुरुआत तो है ही, ये प्रमाणित करती है कि मायावती तानाशाही की जिन्दगी गुज़ार रही हैं और भूल चुकी है कि लोकतंत्र भी कोई चीज़ है | कोई सतीश मिश्र को समझाए कि हर जगह वकालत झाड़ना और अनावश्यक प्रतिभा प्रदर्शन कतई अनुचित है | चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है ,उसकी जिम्मेदारी है कि सभी प्रत्याशी , चाहे वो सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के या फिर कमज़ोर और निर्दलीय हों ,सबको समान अवसर और संसाधनों के अधीन चुनाव लडवाए | ये सच है कि सरकारी और जनता के पैसों से सरकारी जगह पर मायावती ने अपने चुनाव चिन्ह हाथी की सैकड़ों , अपनी और अपने माता पिता की दर्ज़नों मूर्तियाँ गडवायीं हैं | अब उसके हाथी ढके जाने के निर्णय को लेकर विभिन्न दलों सहित आम जनमानस में बेहद प्रसन्नता है और लोग आयोग के निर्णय को विवेकपूर्ण और निष्पक्ष बताते नहीं थक रहे |
मायावती को सोचना चाहिए कि जिस हाथी को वो दलित अस्मिता और स्वाभिमान से जोड़ कर चुनाव आयोग पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं ,वो हास्यास्पद के साथ साथ बचकाना भी है| अब भला हाथी से दलित अस्मिता और स्वाभिमान का क्या लेना देना ? हाथी के स्वभाव और चरित्र का विश्लेषण करें तो हाथी स्वयं में दलित विरोधी है | हाथी ताक़त, गुरूर, नशा,पागलपन, सत्ता , अहंकार , बेफिक्री , मदमस्ती और रौंदने - कुचलने के लिए जाना जाता रहा है , पुराने जमाने में हाथी के पैरों तले लोगों को कुचलने की कथाओं से इतिहास भरा पड़ा है | और दलित भी इसी प्रकार रौंदे और कुचले जाते रहे | ताक़त, गुरूर, नशा,पागलपन, सत्ता , अहंकार , बेफिक्री , मदमस्ती और रौंदने - कुचलने जैसे विशेषणों से दलितों का कभी कोई वास्ता नहीं रहा , उल्टा शोषण ,अत्याचार, उत्पीडन, गरीबी ,बेरोजगारी, कुपोषण,अशिक्षा ,भय भूख और भ्रष्टाचार से सर्वथा सताए गयें है दलित समाज के लोग | अतः हाथी सवर्णवादी मानसिकता और दलित विरोधी स्वभाव का हुआ | इति सिद्धम।।
मेरे हिसाब से तो ये बसपा का चुनाव चिन्ह होना ही नहीं चाहिए था | पता नहीं मायावती क्या खा कर इसे दलित अस्मिता और स्वाभिमान से जोड़ रही हैं | अलबत्ता मायावती की सोच शायद सही भी हो और उसी वजह से शायद हाथी उन्हें पसंद भी हो क्योंकि ज्यादा खाने से उसका पेट बहुत विशाल होता है और वो देखने में सुन्दर भी नहीं होता |
मायावती को सोचना चाहिए कि जिस हाथी को वो दलित अस्मिता और स्वाभिमान से जोड़ कर चुनाव आयोग पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं ,वो हास्यास्पद के साथ साथ बचकाना भी है| अब भला हाथी से दलित अस्मिता और स्वाभिमान का क्या लेना देना ? हाथी के स्वभाव और चरित्र का विश्लेषण करें तो हाथी स्वयं में दलित विरोधी है | हाथी ताक़त, गुरूर, नशा,पागलपन, सत्ता , अहंकार , बेफिक्री , मदमस्ती और रौंदने - कुचलने के लिए जाना जाता रहा है , पुराने जमाने में हाथी के पैरों तले लोगों को कुचलने की कथाओं से इतिहास भरा पड़ा है | और दलित भी इसी प्रकार रौंदे और कुचले जाते रहे | ताक़त, गुरूर, नशा,पागलपन, सत्ता , अहंकार , बेफिक्री , मदमस्ती और रौंदने - कुचलने जैसे विशेषणों से दलितों का कभी कोई वास्ता नहीं रहा , उल्टा शोषण ,अत्याचार, उत्पीडन, गरीबी ,बेरोजगारी, कुपोषण,अशिक्षा ,भय भूख और भ्रष्टाचार से सर्वथा सताए गयें है दलित समाज के लोग | अतः हाथी सवर्णवादी मानसिकता और दलित विरोधी स्वभाव का हुआ | इति सिद्धम।।
मेरे हिसाब से तो ये बसपा का चुनाव चिन्ह होना ही नहीं चाहिए था | पता नहीं मायावती क्या खा कर इसे दलित अस्मिता और स्वाभिमान से जोड़ रही हैं | अलबत्ता मायावती की सोच शायद सही भी हो और उसी वजह से शायद हाथी उन्हें पसंद भी हो क्योंकि ज्यादा खाने से उसका पेट बहुत विशाल होता है और वो देखने में सुन्दर भी नहीं होता |
गुरुवार, 19 जनवरी 2012
जय निषाद !! जय समाजवाद !!
निषाद वीरों !!
मूक दर्शक नहीं हो तुम,
तुम्हारे मूक होने को,
इन लोगों ने गूंगा-बहरा मान लिया है |
कभी न बहने वाला पानी ठहरा मान लिया है ||
इन्हें बता दो,
जब- जब भी प्रलय आया है
जब- जब भी दुनिया बदली है
पानी ने बड़ा किरदार निभाया है |
लेकिन ये पानी भी,
तुम्हारे सामने कहीं टिक नहीं पाया है ||
जय हिंद !! जय निषाद !! जय समाजवाद !!
सोमवार, 16 जनवरी 2012
आरक्षण में विसंगतियां पार्ट 5 : फाइलों में धूल फांक रही है गुहार
कई राज्यों के कश्यप ,निषाद, केवट, मल्लाह और बिन्द समेत एक दर्जन से अधिक जातियों को अनुसूचित जाति एससी या अनुसूचित जनजाति एसटी में शामिल करने की गुहार वर्षों से संसद की फाइलों में धूल फांक रही है। अब तक इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। बिहार और उत्तर प्रदेश में कम से कम एक दर्जन जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है, जबकि इसे एससी- एसटी में शामिल करने की मांग लंबे समय से जारी है, लेकिन संसदीय प्रक्रियाओं और केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच कथित खींचतान के कारण यह मुद्दा लंबे समय से लटका हुआ है। निषाद समुदाय को एससीएसटी में शामिल कराने के लिए लंबे समय से प्रयासरत है कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, दिल्ली और हरियाणा में निषाद समुदाय से जुड़ी जातियों मल्लाह, केवट, वनवासी एवं कुछ अन्य जातियों को अनुसूचित जाति और मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी राज्यों में इसे अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है। इसके कारण बिहार और उत्तर प्रदेश के निषाद समुदाय को वे सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, जो अन्य राज्यों में इस समुदाय को प्राप्त हैं। , लेकिन इस बारे में कोई सकारात्मक पहल नहीं हो पाई है और यह मामला फाइलों में उलझा हुआ है। कई राज्यों में नूनिया, निषाद, केवट, कश्यप, मल्लाह, कहार, तुरहा , कानू, नाई, पाल, दास, प्रजापति, ततमा, बिन्द, धुनिया, सेवक आदि जातियां बदतर स्थिति में जीवन व्यतीत कर रही हैं और उन्हें भी एससीएसटी की तरह ही हर प्रकार का लाभ दिया जाना चाहिए। उन्होंने इन जातियों की समजिल एवं आर्थिक स्थिति की कई बार अध्ययन दल गठित करके समीक्षा भी कराई जाचुकी है और सर्वेक्षण के आधार पर उन्हें एससीएसटी की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की संस्तुतियां भी सरकारों को प्राप्त हो चुकी है। लेकिन राजनैतिक नफ़ा नुक्सान तोलने वाली सरकारों ने हमेशा इस मसले को लम्बा खींचना चाहा है |
हालांकि जनजातीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री किशोर चन्द्र देव ने इन विसंगतियों के बारे में सदन में स्वीकार किया था कि कुछ जातियों को एक राज्य में एससीएसटी में.तो दूसरे राज्य में उसे ओबीसी में रखा गया है। किसी किसी राज्य में यही जातियां सामान्य वर्ग में रखी गई हैं। जब कि मछुआ समुदाय के अतिरिक्त किसी अन्य समाज से यह भेदभाव कहीं नहीं है |
हालांकि जनजातीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री किशोर चन्द्र देव ने इन विसंगतियों के बारे में सदन में स्वीकार किया था कि कुछ जातियों को एक राज्य में एससीएसटी में.तो दूसरे राज्य में उसे ओबीसी में रखा गया है। किसी किसी राज्य में यही जातियां सामान्य वर्ग में रखी गई हैं। जब कि मछुआ समुदाय के अतिरिक्त किसी अन्य समाज से यह भेदभाव कहीं नहीं है |
शनिवार, 14 जनवरी 2012
बाटला हाऊस मुठभेड़ पर अब कांग्रेस का सच !!
बाटला हाऊस मुठभेड़ पर अब सच बोल कर कांग्रेस मुसलमानों के जज़्बात से खेलकर वोट हथियाना चाहती है | कांग्रेस सरकार पहले कह रही थी कि मुठभेड़ सही थी | गृहमंत्री ने लोकसभा में भी यही रिपोर्ट सदन में रखी थी | जबकि समाजवादी पार्टी का तब भी और आज भी ये मानना है कि मुठभेड़ फर्जी थी और बेगुनाह एवं गोल्ड मेडलिस्ट छात्रों के सिरों में यह कह कर गोलियां मार दीं कि ये पाकिस्तानी आतंकवादी हैं | बेशक इस कुकर्म के लिए दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय गृहमंत्रालय के अधीन कार्यरत दिल्ली पुलिस सीधे जिम्मेवार है |
आज यूपी विधान सभा चुनाव में मुसलमानों का वोट हथियाने की गरज से कांग्रेस कह रही है कि मुठभेड़ फर्जी थी | बेशक ये बहुत अहम् बयान इसलिए भी हो जाता है क्योकि या तो देश का गृहमंत्री संसद में झूठ बोलकर आया था जिसके लिए वो दोषी होना चाहिए | और यदि कांग्रेस वास्तव में ऐसा मानती है कि बाटला हाऊस मुठभेड़ फर्जी थी तो इसके लिए जिम्मेवार कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय गृह मंत्री पलानी अप्पा चिदंबरम और गृहमंत्रालय के अधीन कार्यरत दिल्ली पुलिस के खिलाफ क्या कानूनी कारवाही कर रही है, ये कांग्रेसी सरदारों को स्पष्ट करना होगा |
बाटला हाऊस के मुजरिम कांग्रेस का प्रचार करें, और मुसलमान उनके कहने पर वोट दे ,ये कतई नहीं होगा | कांग्रेसी युवराज मुसलमानों की गलियों में दाखिल नहीं हो सकता |
सवाल कांग्रेस के सर पर खड़ा रहेगा, जवाब देना होगा |
आज यूपी विधान सभा चुनाव में मुसलमानों का वोट हथियाने की गरज से कांग्रेस कह रही है कि मुठभेड़ फर्जी थी | बेशक ये बहुत अहम् बयान इसलिए भी हो जाता है क्योकि या तो देश का गृहमंत्री संसद में झूठ बोलकर आया था जिसके लिए वो दोषी होना चाहिए | और यदि कांग्रेस वास्तव में ऐसा मानती है कि बाटला हाऊस मुठभेड़ फर्जी थी तो इसके लिए जिम्मेवार कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय गृह मंत्री पलानी अप्पा चिदंबरम और गृहमंत्रालय के अधीन कार्यरत दिल्ली पुलिस के खिलाफ क्या कानूनी कारवाही कर रही है, ये कांग्रेसी सरदारों को स्पष्ट करना होगा |
बाटला हाऊस के मुजरिम कांग्रेस का प्रचार करें, और मुसलमान उनके कहने पर वोट दे ,ये कतई नहीं होगा | कांग्रेसी युवराज मुसलमानों की गलियों में दाखिल नहीं हो सकता |
सवाल कांग्रेस के सर पर खड़ा रहेगा, जवाब देना होगा |
गुरुवार, 12 जनवरी 2012
मूल निवासी हम हैं !!
हम हैं जल,जंगल के वासी |
हम भारत के आदि निवासी |
सबसे अलग हैं, निर्विवाद हैं |
मूल निवासी हम निषाद है |
आप से क्या मतलब !! जनाबे आली
हमने झरने, पर्वत छाने |
नहीं दासता को हम माने ||
खुला आस्मां ठौर हमारा |
बागी बीता दौर हमारा ||
आंधी पानी मीत हमारे |
आजीविका के यही सहारे ||
सब यातनाएं हमें याद हैं |
मूलनिवासी हम निषाद हैं ||
हम सागर के पुत्र कहाए
हम जलजीत सदा कहलाये
कुदरत का हर ज्ञान हमें था
प्राकृतिक वरदान हमें था
हम मिटटी में रमें हुए हैं
अपनी जड़ में जमें हुए हैं
खुद ही अपना पानी खाद हैं
मूलनिवासी हम निषाद हैं
आपसे क्या मतलब जनाबे आली |
आप से क्या मतलब !! जनाबे आली
मंगलवार, 10 जनवरी 2012
और टाट में पर्दानशीं हुयी माया.............
मायावती की मूर्तियाँ अब और भी डरावनी हो गयीं हैं | टाट और सुतली में लिपटे मायावती के बुत किसी "ममी" से कम नहीं लग रहे | टाट और सुतली में लिपटे हथिनी और हाथी अब अपने नए आवरण से आसानी से मुक्त होने वाले भी नहीं हैं | बसपा के जंगल राज और लूटतंत्र से आजिज़ जनता बलात्कार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का स्पष्ट संकेत दे चुकी है | ऐसे में भला नयी सरकार को क्या पड़ी जो मायावती के टाट के नकाब को उतारने की जेहमत करे | ये संकेत है प्रकृति का | आज बुत कैद हो गए ,निसंदेह आने वाले वक़्त में मायावती का जेल जाना निश्चित है | आखिर पांच सालों की लूट और घोटालों का हिसाब भी तो देना पड़ेगा बहन जी को | ये नायाब मिसाल है मूर्तियाँ ढकने की | विश्व के इतिहास में कहीं भी ऐसा नहीं हुआ है | सत्ता परिवर्तन पर या क्रांति के परिणाम स्वरुप बड़े बड़े तानाशाहों के बुत तोड़ दिए गए या उपेक्षित छोड़ दिए गए, मगर सत्ता में रहते हुए ऐसा अपमान और छीछालेदर शायद ही किसी को भोगनी पड़ी हो | यही तो लोकतंत्र की खूबी है | माया की ममियां अहंकार और तानशाही का नमूना तो हैं ही, ये चेतावनी है उन नेतांओं के लिए जो पांच वर्ष की तानाशाही का ख्वाब देखते हैं | मजेदार बात ये है कि जनता चुनाव आयोग के इस फैसले को सही बताते हुए ताली पीट कर हंस रही है | माया की ममियां फिलहाल चर्चा और आकर्षण का केंद्र तो बन ही गयीं हैं |
क्या खूब कहा है किसी ने --- गम दिया बुतों ने तो खुदा याद आया
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